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प्रायद्वीपीय भारत के पठार – Plateau Of Peninsular India

प्रायद्वीपीय भारत के पठार – Plateau of Peninsular India

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प्रायद्वीपीय भारत के पठार – Plateau of Peninsular India

प्रायद्वीपीय का शाब्दिक अर्थ होता है:- वह भू-भाग जो तीन तरफ से जल से घिरा हुआ हो तथा एक ओर से स्थल से जुड़ा हो। जैसे कि भारत में:-

  • पश्चिम में अरब सागर
  • पूर्व में बंगाल की खाड़ी
  • दक्षिण में हिन्द महासागर

भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति वाला भूखंड है, जिसकी औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है और जिसका विस्तार:-

  • उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वतमाला व दिल्ली,
  • पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों,
  • पश्चिम में गिर पहाड़ियों,
  • दक्षिण में इलायची (कार्डमम) पहाड़ियों
  • उत्तर-पूर्व में शिलॉन्ग एवं कार्बी-ऐंगलोंग पठार तक है।

प्रायद्वीपीय पठार को पठारों का पठार भी कहते हैं, क्योंकि यह अनेक पठारों से मिलकर बना है।

नोट:- प्रायद्वीपीय भारत के भू-भाग का निर्माण मेसोजोइक काल में, गोंडवाना-लैंड के विखंडन के बाद इसके इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट के रूप में उत्तर दिशा में खिसककर एशियाई प्लेट से टकराने के कारण हुआ था। अतः यह प्राचीनतम भू-भाग पैंजिया का एक हिस्सा है, जिसका निर्माण पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से हुआ है।

पहाड़ एवं पठार में अंतर:-

  • पहाड़ का शिखर होता है, जबकि पठार का कोई शिखर नहीं होता है। पठार पहाड़ों की तरह ऊँचे तो होते है परन्तु ये ऊपर से समतल मैदान रूपी होते हैं।
  • पठार का कम-से-कम एक किनारा आस-पास के क्षेत्र से या सागर तल से ऊँचा एवं उसकी ढाल तीव्र होती है

पठारों में ढाल का प्रभाव:-

  • सामान्यतः प्रायद्वीप की ऊँचाई पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती चली जाती है, यही कारण है कि प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांश नदियों का बहाव पश्चिम से पूर्व की ओर होता है।
  • उत्तरी भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर से पूर्व की ओर है, जो सोन,चंबल और दामोदर नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है।
  • दक्षिणी भाग में इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर हैं जो गोदावरी, कृष्णा, महानदी, कावेरी नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है।
  • प्रायद्वीपीय नदियों में नर्मदा एवं ताप्ती नदियाँ अपवाद हैं, क्योंकि इनके बहने की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होती है। ऐसा भ्रंश घाटी से होकर बहने के कारण है।

भारतीय प्रायद्वीपीय पठार के भाग:-

धरातलीय उच्चावच लक्षणों के आधार पर भारतीय प्रायद्वीपीय पठार को मुख्यत: तीन प्रमुख भागो में विभाजित किया जाता है।

  1. मध्य का उच्च भू-भाग (केन्द्रीय उच्च भूमि)।
  2. उत्तर पूर्वी/ पूर्वी पठार।
  3. दक्कन का पठार।

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केंद्रीय उच्च भूमि (The Central Highlands):

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मालवा का पठार:-

  • मालवा का पठार तीन राज्यों में फैला हुआ है – राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश।
  • यह पठार अरावली पर्वत व विन्धयांचल पर्वत के बीच में है।
  • इसे लावा निर्मित पठार भी कहा जाता है।
  • मालवा पठार को राजस्थान में ‘हाड़ौती का पठार’ कहते हैं।
  • काली मिट्टी से ढके हुए इस पठार की ऊँचाई 500-610 मीटर है।
  • यमुना की सहायक चंबल नदी ने इसके मध्य भाग को प्रभावित किया है।
  • मालवा के पठार के पश्चिमी भाग को माही नदी ने और पूर्वी भाग को बेतवा नदी ने प्रभावित किया है।
  • चंबल, बेतवा एवं कालीसिंध इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं।
  • मालवा पठार का ढाल उत्तर की तरफ है, यही कारण है कि चम्बल, बेतवा एवं कालीसिंध नदियाँ उत्तर की दिशा में प्रवाहित होती हैं|
  • यहाँ बेसाल्ट चट्टान में अपक्षरण (Weathering) के कारण काली मृदा का विकास हआ है, इसलिये मालवा पठारी क्षेत्र कपास की कृषि के लिये उपयोगी है।
नोट: चंबल नदी घाटी, भारत में ‘अवनालिका अपरदन’ से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है, जिसे ‘बीहड़ या उत्खात भूमि’ कहते हैं।

बुंदेलखंड का पठार:-

  • बुंदेलखंड का पठार मुख्यत: दो राज्यों में फैला हुआ है:- मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश।
  • बुंदेलखंड के पठार के अंतर्गत आने वाले जिले हैं:-
    • उत्तर प्रदेश के सात जिले:- जालौन, झाँसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बाँदा, महोबा।
    • मध्य प्रदेश के सात जिले:- दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, विदिशा।
  • इसका विस्तार ग्वालियर के पठार और विंध्याचल श्रेणी के बीच में है।
  • यहाँ की ग्रेनाइट व नीस चट्टानी संरचना में अपक्षय व अपरदन की क्रिया होने के कारण लाल मृदा का विकास हुआ है।
  • मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बघेलखंड का पठार, केंद्रीय उच्च भूमि को पूर्वी पठार से अलग करता है।
  • यहां कम गुणवत्ता का लौह अयस्क प्राप्त होता है।
  • बुंदेलखंड के पठार में यमुना की सहायक- चंबल नदी के द्वारा बने महाखड्डों को ‘उत्खात भूमि का प्रदेश’ कहते हैं।

मेवाड़ का पठार:-

  • मेवाड़ के पठार का विस्तार राजस्थान व मध्य प्रदेश में है।
  • मेवाड़ पठार, अरावली पर्वत को मालवा के पठार से अलग करने वाली संरचना है।
  • यह अरावली पर्वत से निकलने वाली बनास नदी के अपवाह क्षेत्र में आता है।

नोट: बनास नदी चंबल नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। 

अरावली पर्वत श्रेणी:-

  • प्री-कैंब्रियन काल में उत्पतित; भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृखंला- अरावली पर्वत का विस्तार उत्तर-पूर्व में ‘दिल्ली रिज’ (मजनू टिला तक) से लेकर दक्षिण-पश्चिम में ‘गुजरात के पालनपुर’ तक लगभग 800 किमी. है।
  • यह प्राचीनतम मोड़दार ‘अवशिष्ट पर्वत’ (Residual Mountain) का उदाहरण है; जो राजस्थान के बांगर को, केंद्रीय उच्च भूमि से अलग करने वाली संरचना है।
  • अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर ‘गुरु शिखर’ है, जो ‘आबू पहाड़ी’ पर स्थित है। इसी आबू पहाड़ी में ‘जैनियों’ का प्रसिद्ध धर्मस्थल ‘दिलवाड़ा जैन मंदिर’ स्थित है जबकि अन्य शिखर ‘कुंभलगढ़’ है।
  • इस प्राचीन वलित पर्वत की अधिकतम लम्बाई राजस्थान राज्य में है।
  • अरावली पर्वत का दक्षिणी भाग ‘जर्गा पहाड़ियों’ के नाम से जाना जाता है।
  • दिल्ली के पास अरावली पर्वत को ‘दिल्ली रिज’ के नाम से जाना जाता है।
  • अरावली संरचना पश्चिमी भारत का मुख्य ‘जल विभाजक’ है जो राजस्थान मैदान के अपवाह क्षेत्र को गंगा के मैदान के अपवाह क्षेत्र से अलग करती है।
  • ‘लूनी नदी’ इस पर्वत से निकलने वाली राजस्थान मैदान की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नदी है जो राजस्थान बांगर और थार मरुस्थल से होते हुए गुजरात के कच्छ के रण में विलीन हो जाती है, इसलिये यह एक अंत: स्थलीय अपवाह तंत्र का उदाहरण है।
  • अरावली से निकलने वाली सुकरी और जवाई नदियाँ लूनी नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं।
  • बनास नदी अरावली को पश्चिम से पूर्व दिशा में पार करती है और चम्बल नदी में मिल जाती है।
  • अरावली पर्वतमाला पश्चिमी भारत की एक मुख्य ‘जलवायु विभाजक’ भी है जो पूरब के अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाले क्षेत्र को पश्चिम के अर्द्ध शुष्क और शुष्क प्रदेश से अलग करती है।

नोट: राजस्थान राज्य में विस्तृत- ‘मेवाड़ का पठार’ अरावली के दक्षिण पूर्व में प्राचीनतम चट्टानों से निर्मित पठार है, जो कि अरावली पर्वत श्रेणी के अंतर्गत आता है

पूर्वी पठार (Eastern Plateau)

इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है:-

  1. मेघालय का पठार या ‘कार्बी ऐंगलोंग’ पठार
  2. मालदा गैप या राजमहल-गारो गैप
  3. छोटानागपुर का पठार
  4. दंडकारण्य का पठार 

मेघालय का पठार:-

  • प्रायद्वीपीय पठार का एक भाग जिसे ‘मेघालय’ तथा ‘कार्बी ऐंगलोंग’ पठार के नाम से जाना जाता है।
  • उत्पत्ति एवं संरचना की दृष्टि से मेघालय का पठार, प्रायद्वीपीय पठार (छोटानागपुर का पठार) का ही पूर्वी विस्तार है, जो ‘राजमहल-गारो गैप’ अथवा ‘मालदा गैप’ के द्वारा अलग हुआ है।

नोट: हिमालय की उत्पति के समय भारतीय प्लेट उत्तर पूर्व दिशा में खिसकने से यह पठार एक भ्रंश (मालदा दर्रा) के द्वारा छोटानागपुर के पठार से अलग हो गया था। 
  • यहाँ धारवाड़ संरचना से निर्मित ‘शिलॉन्ग रेंज’ सबसे ऊँचा पर्वतीय क्षेत्र है, इसलिये इसे ‘शिलॉन्ग के पठार’ के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी नॉकरेक (मेघालय में अवस्थित)है।
  • इस पठार में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमशः गारो, खासी, जयंतिया तथा मिकिर आदि पहाड़ियाँ अवस्थित हैं, जो प्राचीन चट्टानों से बनी हैं।  
  • गारो, खासी, जयंतिया इस पठार में निवास करने वाली प्रमुख जनजातियाँ हैं। 
  • यह क्षेत्र तीनों ओर पर्वतो से घिरा होने के कारण, यहाँ औसत से अधिक वर्षा होती है। यही कारण है कि यहाँ खासी पहाड़ी के दक्षिण में स्थित ‘मॉसिनराम’ एवं ‘चेरापूंजी’ विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गिने जाते हैं। 
  • औसत से अधिक वर्षा होने के कारण ही यहाँ ‘लैटेराइट मिट्टी’ तथा ‘सदाबहार वनों’ का विकास हुआ है।

मालदा गैप या राजमहलगारो गैप:-

  • इसके द्वारा छोटानागपुर का राजमहल पर्वत, मेघालय के गारो पर्वत से अलग होता है, इसलिये इसे ‘राजमहल-गारो गैप’ कहते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में इसे ‘मालदा गैप’ कहते हैं। 
  • इसकी उत्पत्ति ‘प्रायद्वीपीय भारत के संचलन के दौरान धंसाव की प्रक्रिया’ के कारण हुई है। 
  • गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों का मालदा/ राजमहल गैप में निक्षेपण से डेल्टाई मैदान का निर्माण हुआ है। 
  • इस डेल्टाई मैदान में ‘पीट मृदा’ की उपलब्धता के कारण ही ‘मैंग्रोव वनस्पति’ का विकास हुआ है। इस क्षेत्र में पाया जाने वाला ‘सुंदरबन’ भारत के सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। 

छोटानागपुर का पठार:-

  • इसका विस्तार मुख्यतः झारखंड में है। इसके अलावा:-  दक्षिणी बिहार, उत्तरी छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल का पुरुलिया ज़िला और ओडिशा का उत्तरी क्षेत्र भी छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में आते हैं। 
  • इस पठार के उत्तर-पूर्व में राजमहल पहाड़ी, उत्तर में हज़ारीबाग का पठार तथा दक्षिण में राँची का पठार है। इन तीनों संरचनाओं को संयुक्त रूप से छोटानागपुर पठार क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
  • इनके अतिरिक्त पाट प्रदेश, रांची, सिंहभूम, धनबाद, पलामू, संथाल परगना, पुरलिया, सोनभद्र का पठार आदि का क्षेत्र भी संयुक्त रूप से छोटानागपुर-पठार क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
  • इस पठार की औसत ऊँचाई 700 मी0 है।
  • दामोदर नदी, राँची के पठार को हज़ारीबाग के पठार से अलग करती है। यह छोटानागपुर के पठार की सबसे बड़ी नदी है। 
  • दामोदर नदी बेसिन, कोयला भंडार की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। 
  • सम्पूर्ण छोटानागपुर पठार की सबसे ऊँची चोटी हज़ारीबाग पठार की चोटी- पारसनाथ हिल है। यह जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। 
  • राँची पठार से निकलने वाली ‘स्वर्ण रेखा नदी’, छोटानागपुर की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। राँची के समीप इस नदी पर हुंडरु जलप्रपातहै। 
  • छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टान से निर्मित उच्च स्थलाकृति या द्वीप-रूपीय स्थलाकृति को ‘पाट-भूमि’ (Pat Land) कहते हैं।
  • इस पठार का सबसे ऊँचा क्षेत्र पाट-भूमि ही है, जिसकी औसत उचाई 1100 मीटर है। भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से पाट क्षेत्र एक ‘उत्थित भूखण्ड’ का उदाहरण है।
  • छोटानागपुर के पठार के इसी पाट प्रदेश से, इस पठारीय क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली कई नदियाँ निकलती हैं, जैसे कि:- दामोदर, उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, कनहर आदि।
नोट:-  छोटानागपुर के पठार का महाराष्ट्र के नागपुर जिले से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका नाम ‘नागपुर’ शायद यहाँ पर प्राचीनकाल में राज करने वाले नागवंशी राजाओं से लिया गया है। ‘छोटा’ शब्द राँची से कुछ दूरी पर स्थित ‘छुटिया’ नामक गाँव का परिवर्तित रूप है जिसमें नागवंशियों के दुर्ग के खँडहर मौजूद हैं।

दंडकारण्य का पठार:

  • इसका विस्तार ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना तक है। अतः यह भारत के मध्यवर्ती भाग में स्थित है। 
  • गोदावरी की सहायक इंद्रावती नदी का उद्गम इसी क्षेत्र से होता है। 
  • यह अत्यंत ही ऊबड़-खाबड़ एवं अनुपजाऊ क्षेत्र है, लेकिन खनिज संसाधनों के भंडार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। 
  • भारत में ‘टिन धातु’ दंडकारण्य पठार में स्थित ‘बस्तर’ क्षेत्र में पाई जाती है।
नोट: छत्तीसगढ़ बेसिन/ महानदी बेसिन, ‘छोटानागपुर के राँची पठार’ को ‘दंडकारण्य पठार’ से अलग करता है तथा स्वयं भी  महानदी के द्वारा ‘छोटानागपुर पठार के राँची पठार’ से अलग होता है। 
नोट: इनके अतिरिक्त पूर्वी पठारों में एक और प्रमुख पठार है; बघेलखंड का पठार, जिसका  का विस्तार मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में हैं। इस पठार के अंतर्गत मध्य प्रदेश के सतना और रीवा जिला तथा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर को शामिल किया जाता है।

दक्कन का पठार (The Deccan Plateau)

दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार में उच्चावच संरचनात्मकता संबंधी पर्याप्त विविधता पाई जाती है। अत: इसे प्रायद्वीपीय भारत का ‘पठारो का पठार’ भी कहा जाता है। इस पठार का विस्तार तापी नदी के दक्षिण में त्रिभुजाकार रूप में है। 

इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है:-

  1. दक्कन ट्रैप
  2. कर्नाटक का पठार 
  3. आंध्र का पठार 

दक्कन ट्रैप:-

  • यह मुख्यत: महाराष्ट्र के क्षेत्र में विस्तृत है, जिसका विस्तार 16° उत्तरी अक्षांश के उत्तर से लेकर उत्तर-पूर्व में नागपुर तक है।
  • महाराष्ट्र में यह ‘बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना’ होने के कारण, यहाँ  ‘काली मिट्टी’ का विकास हुआ जो  कपास के उत्पादन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 
  • इसी पठारी क्षेत्र से ‘गोदावरी नदी’ अपवाहित होती है। 
  • सतमाला, अजंता, बालाघाट और हरिश्चंद्र इत्यादि पहाड़ियों का विस्तार भी इसी पठारी क्षेत्र में है।

कर्नाटक का पठार:-

  • पश्चिमी घाट से संलग्न कर्नाटक के पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्र को मलनाड‘ कहते हैं।
  • ‘बाबा बूदान’ यहाँ का सबसे ऊँचा पर्वतीय क्षेत्र है तथा ‘मुल्लयानगिरी’ (मुलनगिरी) इसकी सबसे ऊँची चोटी है।

नोट: ऑक्सफोर्ड एटलस में ‘कुदेरमुख’ को ‘बाबा-बूदान’ की सबसे ऊँची चोटी दर्शाया गया है।
  • मलनाड से संलग्न पूर्व में अपेक्षाकृत कम ऊँचे पठारी क्षेत्र को ‘मैदान’ कहते हैं, जिसमें औसत से अधिक ऊँचे मैदानी क्षेत्र को ‘बंगलूरू का पठार’ एवं ‘मैसूर का पठार’ के नाम से जाना जाता है।
  • मैसूर के पठार में ही ‘कावेरी नदी’ का अपवाह क्षेत्र है। 
  • कृष्णा, कावेरी, तुंगभद्रा, शरावती व भीमा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं।
  • यहाँ लौह अयस्क का सर्वाधिक भंडार है, जिसके लिये बाबा बूदान पर्वतीय क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण है। 
  • शरावती नदी पर भारत का महत्त्वपूर्ण जलप्रपात है, जिसे ‘जोग या गरसोप्पा’ जलप्रपात कहते हैं। इसे ‘महात्मा गांधी’ जलप्रपात भी कहते हैं। 
  • कुंचीकल जलप्रपात, भारत का सबसे ऊँचा जलप्रपात (455 मीटर) है, जो कि कर्नाटक के ‘शिमोगा जिले’ में ‘वाराही नदी’ पर है।

आंध्र का पठार:-

  • आंध्र के पठार के अंतर्गत:-  ‘रायलसीमा का पठार’ तथा ‘तेलंगाना के पठार’ को शामिल किया गया है। 
  • कृष्णा नदी बेसिन के दक्षिण के पठारी क्षेत्र को ‘रायलसीमा का पठार’ कहते हैं, जहाँ वेलीकोंडा, पालकोंडा और नल्लामलाई पर्वतों का विस्तार है
  • कृष्णा नदी बेसिन के उत्तर में स्थित पठारी क्षेत्र को ‘तेलंगाना का पठार’ कहते हैं। 
  • तेलंगाना के पठार का ऊपरी हिस्सा पठारी है तथा दक्षिणी हिस्सा उपजाऊ मैदान है। 
  • कृष्णा और गोदावरी नदी बेसिन के मध्य में कोल्लेरू झील अवस्थित है, जो एशिया की सबसे बड़ी दलदली भूमि है। 

नोट:- दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत आने वाले पर्वतीय क्षेत्र हैं:- केरल एवं तमिलनाडु की सीमा पर स्थित नीलगिरी, अन्नामलाई, कार्डमम तथा तमिलनाडु में स्थित पालनी पहाड़ियाँ आदि। 

  • डोडाबेटा, नीलगिरी पर्वत की सबसे ऊँची चोटी है।
  • प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ‘उडगमंडलम या ऊटी’ नीलगिरी में ही अवस्थित है। 
  • अन्नामलाई पर्वत की चोटी अनाईमुडी‘ (2,695 मीटर) दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी है।
  • कार्डमम, प्रायद्वीपीय भारत का दक्षिणतम पर्वतीय क्षेत्र है जो कि केरल व तमिलनाडु की सीमाओं पर स्थित है।

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