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पृथ्वी की आंतरिक संरचना – Internal Structure Of Earth

पृथ्वी की आंतरिक संरचना – Internal Structure of Earth

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पृथ्वी की आंतरिक संरचना

(Earth Internal Structure)

पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रत्यक्ष (धरातलीय व खनन से प्राप्त चट्टानें, ज्वालामुखी) और अप्रत्यक्ष (गुरुत्वाकर्षण, घनत्व, दबाव, तापमान, चुम्बकीय क्षेत्र एवं भूकंप संबंधी क्रियाएँ आदि) स्रोतों का उपयोग किया है क्योंकि पृथ्वी की आंतरिक परिस्थितियों के कारण पृथ्वी के आंतरिक (केंद्र) भाग तक पहुँचकर पृथ्वी का निरिक्षण करना संभव नहीं है।internal structure of the earth sukrajclasses.com

पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत भूकंपीय गतिविधियों को माना गया है क्योंकि भूकंपीय तरंगें ठोस, द्रव और गैसीय तीनों अवस्था में भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति दर्शाती हैं।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया है:- internal structure of earth-sukrajclasses.com

  1. भूपर्पटी (The Crust)
  2. मैंटल (The Mantle)
  3. क्रोड (The Core)

भू-पर्पटी (The Crust):

  • पृथ्वी की सबसे उपरी सतह (बाहरी भाग) ठोस को भू-पर्पटी कहते है।
  • इसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है इसलिए यह बहुत ही भंगुर (Brittle) भाग है।
  • भू-पर्पटी की मोटाई पर्वतीय शृंखलाओं, महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है।
  • महासागरों के नीचे भू-पर्पटी की औसत मोटाई 5 Km (किलोमीटर) है, महाद्वीपों के नीचे यह लगभग 30 Km तक है और हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भू-पर्पटी की मोटाई लगभग 70 Km (किलोमीटर) तक है।
  • पृथ्वी की भू-पर्पटी मुख्यत रूप से सिलिका (Silica) एवं एलुमिना (Alumina) जैसे खनिजों से बनी है। इसलिए इसे सि-याल (Si-Al) (सि-सिलिका तथा एल-एलुमिना ) कहा जाता है और पृथ्वी की भू-पर्पटी में ऑक्साइड की बात करें तो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पाई जाती है।
  • भूकंपीय तरंगों में अंतर के आधार पर भू-पर्पटी को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है: ऊपरी भूपर्पटी और निचली भूपर्पटी।
  • निचली भूपर्पटी परत अति क्षारीय चट्टानों से बनी है।
  • कोनराड संबद्धता: उपरी तथा निचली भू-पर्पटी के बीच के सीमा क्षेत्र को कोनराड संबद्धता कहते हैं।
  • मोहोरोविसिक असंबद्धता: निचली भू-पर्पटी और ऊपरी मैंटल के बीच की सीमा को मोहोरोविसिक असंबद्धता या मोहो-असंबद्धता कहा जाता है।

मैंटल (The Mantle):

  • भू-पर्पटी के एकदम नीचे जो परत पाई जाती है, उसे मैंटल (Mantle) कहते हैं।
  • इसकी मोटाई मैंटल परत के प्रारम्भ से लगभग 2900 km. (किलोमीटर) की गहराई तक होती है।
  • भूकंपीय तरंगों में भिन्नता के आधार पर मैंटल को भी दो भागों में बांटा गया है: ऊपरी मैंटल और निचली मैंटल के रूप में।
  • मैंटल का ऊपरी भाग “दुर्बलतामंडल (Asthenosphere)” कहा जाता है।
  • ऊपरी मैंटल परत का विस्तार लगभग मैंटल परत के प्रारम्भ से 400 Km तक आँका गया है।
  • नीचली मैंटल 400 km. (किलोमीटर) से 2900 km. (किलोमीटर) तक विस्तृत है।
  • मैंटल मुख्यतः सिलिका (Si) एव मैगनीशियम (Mg) की बनी है, इसलिए इसे सिमै (Si-Mg) सि-सिलिका तथा मै-मैगनीशियम कहा जाता है।
  • रेपटी असंबद्धता: ऊपरी मैंटल परत को निचली मैंटल परत से अलग करने वाली असंबद्धता को “रेपटी असंबद्धता” के नाम से जाना जाता है।
  • गुटेनबर्ग असंबद्धता: एक संक्रमण परत जो मैंटल को क्रोड (The Core) से विभक्त करती है उसे “गुटेनबर्ग असंबद्धता” कहते हैं।

क्रोड (The Core):

  • क्रोड पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग है जो मैंटल के अंत सीमा से पृथ्वी के केंद्र तक पाया जाता है।
  • भूकंपीय तरंगों के अध्ययन से पता चलता है की इसकी गहराई लगभग 2900 km. से 6378 तक है। इस परत का घनत्व मैंटल की अपेक्षा दो गुना है।
  • तरंगों के गति के आधार पर क्रोड़ को दो भागों में बांटा गया है- बाह्य क्रोड़ (Outer core) और आंतरिक क्रोड़ (Inner core)।
  • बाहरी क्रोड (Outer core) तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड (Inner core) ठोस अवस्था में है।
  • क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है। इसे ‘निफे’ (NiFe) परत के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र भी कहा जाता है।
  • लेहमन असंबद्धता: बाह्य और आंतरिक क्रोड के मध्य में स्थित सीमा क्षेत्र को लेहमन असंबद्धता कहते है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना – Internal Structure of Earth

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