Origin of Continents and Oceans- महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति
Competitive Geography topic – “Origin of Continents and Oceans- महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति”, is important for all competitive exams like: CET (Common eligibility Test), SSC CGL, RRB NTPC, UPSC and other state civil services exams. In these exams, almost 4-5 questions are coming from Geography. Let’s start the topic:
- पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद से लगभग 3.8 अरब वर्ष पहले महाद्वीपों एंव महासागरों का निर्माण हुआ किन्तु ये महाद्वीप एवं महासागार जिस रूप में आज है उस रूप में पहले नहीं थे।
- सम्पूर्ण पृथ्वी महाद्वीपों और महासागरों का योग है अर्थात्त महाद्वीप एवं महासागर विश्व के दो प्रमुख भौगोलिक घटक हैं।
- पृथ्वी की बाह्य भूपर्पटी (Crust) जिस पर महाद्वीप और महासागर स्थित है स्थलमण्डल कहलाती है।
- पृथ्वी की भूपर्पटी (Crust) का 70.8 % भाग महासागरों (अर्थात्त जल) तथा 29.2 % भाग महाद्वीपों (अर्थात्त स्थल) से घिरा हुआ है।
- महाद्वीप एवं महासागर को पृथ्वी के प्रथम श्रेणी के उच्चावच के अंतर्गत शामिल किया गया है।
- सम्पूर्ण पृथ्वी का क्षेत्रफल लगभग 50.995 करोड़ वर्ग कि०मी० है। जिसमें से 36.106 करोड़ वर्ग कि०मी० पर जलमंडल अवस्थित है तथा शेष 14.889 करोड़ वर्ग कि०मी० पर स्थल मण्डल अवस्थित है।
- पृथ्वी के सम्पूर्ण स्थल मण्डल को सामान्यतः 7 महाद्वीपों में विभाजित किया गया है। ये महाद्वीप हैं – एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका।
- पृथ्वी के सम्पूर्ण जल मंडल को मुख्यतः 5 महासागरों में विभाजित किया गया है। ये महासागर हैं – प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर और दक्षिणी महासागर।
महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति के प्रमुख सिद्धांत:
महाद्वीप एवं महासागर की नितल उत्पत्ति, विकास एवं विस्तार के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मत दिए हैं:
“महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त” (Continental Drift Theory):
- जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर (Alfred Wegener) ने सन् 1912 में “महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त” प्रस्तावित किया। यह सिद्धान्त महाद्वीप एवम् महासागरों के वितरण से ही सम्बंधित था।
- इस सिद्धान्त के अनुसार (वेगनर) कार्बनी फेरस युग में सभी स्थल भाग (महाद्वीप) एक अकेले भूखंड में जुड़े हुए थे और यह भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था और इस विशाल महासागर को पैंथालासा (Panthalassa) कहा गया। इस विशाल स्थलीय भाग (महाद्वीप) को वेगनर ने पैंजिया (Pangaea) नाम दिया।
- वेगनर का विचार था कि पैंजिया के कुछ भाग भूमध्य रेखा की ओर खिसकने लगे। यह प्रक्रिया (विभाजन की प्रक्रिया) आज से लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व अंतिम कार्बनी फेरस युग में आरम्भ हुई। लगभग 5-6 करोड वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन युग में महाद्वीपों ने वर्तमान स्थिति के अनुरुप लगभग मिलता जुलता आकार धारण कर लिया था।
पैंजिया (Pangaea):
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- आज के सभी महाद्वीप एक ही भूखंड के भाग थे जिसे पैंजिया कहा गया ।
- पैंजिया का अर्थ है – सम्पूर्ण पृथ्वी।
- पैंजिया के विभाजन से दो बड़े महाद्वीपीय पिंड अस्तित्व में आये।
- लारेशिया (उत्तरी भूखण्ड)
- गोंडवाना लैंड (दक्षिणी भूखण्ड)
- इसके बाद लारेशिया एवं गोंडवाना लैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे हिस्सों में बँट गए।
पैंथालासा (Panthalassa):
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- पैंजिया के चारों और विस्तृत विशाल सागर को पैंथालासा कहा गया।
- पैंथालासा का अर्थ है – जल ही जल।
वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के कारण:
- पोलर या ध्रुवीय फलीइंग बल: पृथ्वी के घूर्णन के कारण पृथ्वी गोल न होकर भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है जिसे वेगनर महाद्वीपीय विस्थापना का एक कारण मानते हैं।
- ज्वारीय बल: ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से संबंधित है जिससे महासागरो में ज्वार उत्त्पन होता। वेगनर के अनुसार करोड़ों वर्षों के दौरान यह बल प्रभावशाली होकर महाद्वीपीय विस्थापन के लिए उतरदायी है।
नोट:- यद्यपि कई विद्वानों इन दोनों बलों को महाद्वीपीय विस्थापन के लिए अपर्याप्त माना है।
होम्स का संवहन-धारा सिद्धान्त (Convectional Current Theory of Arther Holmes):
- आर्थर होम्स ने 1930 के दशक में महाद्वीपीय विस्थापन के सम्बन्ध में ‘संवहन धारा सिद्धान्त‘ प्रस्तुत किया।
- यह सिद्धान्त शैलों की रेडियो ऐक्टिवता पर आधारित है।
- भूपटल की शैलों में यूरेनियम, थोरियम, पौटेशियम आदि रेडियो एक्टिव पदार्थ विखण्डित होकर ऊष्मा (ताप) पैदा करते हैं।
- होम्स ने तर्क दिया कि संवहन धारायें रेडियोएक्टिव तत्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं।
प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त (Plate Tectonic Theory):
- सन् 1967 में मैक्कैन्जी, पारकर, मोरगन ने स्वतंत्र रुप से उपलब्ध तथ्यों को अवधारणा प्रस्तुत की जिसे ‘प्लेट विवर्तनिकी’ कहा गया।
- महासागरीय एंव महाद्वीपीय स्थलखंडों से मिलकर बना, ठोस व अनियमित आकार का विशाल भू–खंड को विवर्तनिक प्लेट कहा गया है।
- स्थलमंडल को आंतरिक रूप से दृढ़ प्लेट का बना हुआ माना गया है जोकि विभिन्न प्रारूपों में गतिशील तथा प्रवाहित होते रहते हैं। पृथ्वी के स्थलमंडल में पर्पटी एवं उपरी मैंटल को सम्मिलित किया जाता है जिसकी मोटाई महासागरों में 5 से 100 कि० मी० और महाद्वीप भाग में लगभग 200 की० मी० है।
- प्रोफेसर हैरी हेस द्वारा 1960 में इन्हीं तथ्यों के आधार पर इस संकल्पना का प्रतिपादन कियागया था। हेस के अनुसार महाद्वीप तथा महासागर विभिन्न प्लेट के ऊपर टिके है। जब ये प्लेटे प्रवाहित होती हैं तो उनके साथ महाद्वीप तथा सागरीय तली भी विस्थापित हो जाती हैं।
- पैंजिया के विभिन्न प्लेटों के स्थानांतरण तथा प्रवाह के कारण ही वर्तमान महाद्वीपों तथा महासागरों का रूप प्राप्त हुआ है।
नोट:- प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत वर्तमान में महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत है।
प्लेटें (Plates):
‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त‘ के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य और कुछ अन्य छोटी प्लेटों में विभक्त किया गया है:-
मुख्य प्लेटें:
- अंटार्कटिक प्लेट
- उत्तरी अमेरिकी प्लेट
- दक्षिणीअमेरिकी प्लेट
- यूरेशियन प्लेट
- प्रशांत महासागरीय प्लेट
- अफ्रीकी प्लेट
- इंडो-ऑस्ट्रेलियन-न्यूज़ीलैंड प्लेट
महत्वपूर्ण छोटी प्लेटें:
- कोकोस प्लेट: कोकोस प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
- नजका प्लेट: यह प्लेट दक्षिणी अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
- अरेबियन प्लेट: इसमे अधिकांश अरब प्रायद्वीप का भूभाग शामिल है।
- फिलीपीन प्लेट: यह प्लेट एशिया महाद्वीप और प्रशान्त महासागर प्लेट के बीच स्थित है।
- कैरोलिन प्लेट: यह प्लेट न्यूगिनी के उत्तर में फिलीपियन व इण्डियन प्लेट के मध्य में स्थित है।
- फ्यूजी प्लेट: फ्यूजी प्लेट आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
प्लेट सीमाओं के प्रकार:
- अपसारी सीमा: जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग होती हैं और नवीन पर्पटी का निर्माण करती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेट कहा जाता है।
- अभिसरण सीमा: जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है जिसके कारण वहाँ की भूपर्पटी नष्ट होती है, वे अभिसरण सीमा कहलाती है।
- रूपान्तर सीमा: जहाँ न तो नवीन पर्पटी का निर्माण होता है और न ही किसी पर्पटी का विनाश होता है, वे रूपान्तरण सीमा होती है।
महाद्वीपों के विस्थापन के पक्ष में प्रमाण:
- महाद्वीपों में साम्यता: यदि हम दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका महाद्वीपों की तटरेखाएँ के आकार को ध्यान से देखें तों पायेंगे कि इनके आमने सामने की तट रेखाओं में अद्भुत साम्य दिखाता है।
- महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता: रेडियोमिट्रिक काल (Radiometric dating) विधि की सहायता से जाँच करने पर 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक पट्टी ब्राजील तट (दक्षिणी अमेरीका) और प० अफ्रीका के तट पर मिलती है इससे यह पता चलता है कि दानों महाद्वीप प्राचीन काल में साथ-साथ थे।
- टिलाइट (Tillite): टिलाइट, हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानें हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिणी गोलार्द्ध के छ: विभिन्न स्थलखंडों में मिलते हैं। यह समानता इनके प्राचीन काल में एक-साथ होने का प्रमाण है।
- प्लेसर निक्षेप (Placer deposits): घाना देश के तट पर सोने के बड़े निक्षेपों की उपस्थिति मिलती है किन्तु यहाँ उद्गम चट्टानों की अनुपस्थिति आश्चर्यजनक है।
- सोना युक्त शिराएँ ब्राजील में पायी जाती हैं अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि घाना (अफ्रीका महाद्वीप) में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील (द. अमेरिका महाद्वीप) पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े होंगें।
- जीवाशमों का वितरण: आज एक दूसरे से दूर कुछ महाद्वीपों पर एक जैसे जीवों की अस्थियाँ मिलती है जो वर्तमान में उन महाद्वीपों पर नहीं पाये जाते हैं।
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