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1950 से 1990 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था – Indian Economy

1950 से 1990 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था – Indian Economy

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1950 से 1990 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था – Indian Economy

स्वतंत्रता पश्चात् ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ प्रणाली को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए में चुना गया, जिसमें सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों को स्थान दिया गया अर्थात् यह अर्थव्यवस्था प्रणाली, निजी उपक्रम तथा निजी लाभों का समर्थन तो करती है परन्तु साथ ही साथ सम्पूर्ण समाज के हितों की रक्षा के लिए सरकार के अस्तित्व को भी महत्वपूर्ण मानती है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था:- इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का संचालन एक केन्द्रीय सता द्वारा सामूहिक हित व कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है।

  • इसमें समाज की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है और यह माना जाता है कि सरकार यह जानती है कि देश के हित में क्या है। अतः लोगों की वैयक्तिक इच्छाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता।
  • समाजवादी अर्थव्यवस्था को समान अर्थव्यवस्था अथवा केन्द्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है।
  • इसमें सेवाओं और साधनों का वितरण लोगों की आवश्यकता के आधार पर होता है न कि उनकी क्रय क्षमता के आधार पर।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था:- ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पति के सभी साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व व नियंत्रण होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन निजी हित व लाभ प्रेरणा के उद्देश्य से किया जाता है।

  • समाजवादी अर्थव्यवस्था के इतर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सेवाओं और साधनों का वितरण और निर्माण लोगों की क्रय शक्ति के आधार पर होता है न कि उनकी आवश्यकता के आधार पर।
  • इस अर्थव्यवस्था प्रणाली में सरकार आर्थिक कामकाज के प्रबंधन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नही करती।

1950 से 1990 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था नीतियों के महत्वपूर्ण तथ्य:-

  • वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में योजना आयोग की स्थापना हुई, जिसे सोवियत संघ से प्रेरित होकर लिया गया था। यह Top to Bottom approach पर कार्य करती थी। वर्तमान में इसकी जगह नीति आयोग ने ले ली है।
    • योजना आयोग द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की गयी जिनमें से द्वितीय पंचवर्षीय योजना ‘महालनोबिस के सिद्धांत’ पर आधारित थी।
    • इन पंचवर्षीय योजनाओं के मुख्यतः 4 लक्ष्य थे:-
      1. समानता- यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन वर्ग को भी सुलभ हो।
      2. संवृद्धि- देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि।
      3. आधुनिकीकरण- नई तकनीकी (New Technology) को अपनाना ही आधुनिकीकरण है।
      4. आत्मनिर्भरता- हमारी सात पंचवर्षीय योजना में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया अर्थात् उन वस्तुओं के आयात से बचा जाये जिन्हें देश में ही बनाया जा सकता हो।
  • देश में जमींदारी को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम चलाए गए।
  • हरित क्रांति का दौर:-
    • हरित क्रांति के दौरान, उच्च पैदावार वाली किस्मों के HYV (High Yield Variety) बीजों का इस्तेमाल किया गया। इन बीजों के लिए पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों, कीटनाशकों तथा निश्चित जल पूर्ति की भी आवश्यकता थी। अतः वित्तीय साधनों की भी जरूरत थी।
    • वित्तीय साधनों की कमी के चलते, वर्ष 1960-1970 के प्रथम चरण में हरित क्रांति पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों तक ही सीमित रही।
    • हरित क्रांति के फलस्वरूप भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हो गया।
    • इसका नकारात्मक पहलू यह था कि 1990 तक 65% जनसंख्या कृषि में लगी हुई थी। इसका अर्थ यह है कि सेवा तथा औद्योगिक क्षेत्र कृषि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को खपा नहीं पाया।

अत: 1960 से 1970 के दौरान अपनाई गई नीतियों को ज्यादा सफल नहीं माना जाता।

  • औद्योगिक नीति:- निर्धन राष्ट्र तभी प्रगति कर पाते हैं जब उनमें अच्छे औद्योगिक क्षेत्र हों। इसके लिए औद्योगिक नीति लाना जरुरी था।

A. औद्योगिक नीति प्रस्ताव (1956):-

    • इसे द्वितीय पंचवर्षीय योजना में लागू किया गया।
    • इसमें उद्योग को तीन वर्गों में बाँटा गया:-
      1. प्रथम वर्ग- वे उद्योग शामिल थे जिन पर राज्य का स्वामित्व था।
      2. द्वितीय वर्ग- निजी व सरकारी क्षेत्र मिलकर जो उद्योग शुरू करते थे।
      3. तृतीय वर्ग- इसमें निजी क्षेत्र के उद्योग शामिल थे। निजी क्षेत्र को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से नियंत्रण में रखा गया। उत्पादन बढ़ाने के लिए लाइसेंस तभी दिया जाता था जब सरकार आश्वस्त हो जाती थी कि अर्थव्यवस्था में बढ़ी हुई मात्रा की आवश्यकता है।

B. लघु उद्योग नीति:- वर्ष 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति, जिसे ‘कर्वे समिति’ भी कहा जाता था, ने लघु उद्योग का सुझाव दिया।

    • 1950 में 5 लाख तक के उद्योग को लघु उद्योग के दर्जे में रखा जाता था। आज इसे 1 करोड़ कर दिया गया है।
    • लघु उद्योग को अधिक श्रम प्रधान माना जाता था। अतः ये अधिक रोजगार सृजन करते हैं।
    • लघु उद्योग, बड़े उद्योगों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते अतः इनकी रक्षा किया जाना आवश्यक है। जिसके लिए कम उत्पाद शुल्क, कम ब्याज पर ऋण आदि सुविधाएं इन्हें दी जाती हैं।

C. व्यापार नीति:-

    • प्रथम सात पंचवर्षीय योजना में व्यापार की अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इसे आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है।
    • वस्तुओं का आयात करने के स्थान पर भारत में ही बनाने पर जोर दिया जाता था।
    • आयात संरक्षण के 2 प्रकार थे:-
      1. प्रशुल्क– आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर।
      2. कोटा– आयातित वस्तुओं की मात्रा को निर्धारित करना।

तीनों क्षेत्रों का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान:–

क्षेत्र 1950-1951 में GDP%

1990-1991 में GDP%

कृषि

59%

34.9%

उद्योग

13%

24.6%

सेवाएँ

28%

40.5%

1950 से 1990 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था – Indian Economy

1950-1990 तक की नीतियों में कमियां:-

बड़े उद्योगपति, नई फर्म शुरू करने के लिए नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के लिए लाइसेंस जारी करा लेते थे। प्रतिस्पर्धा कम होने के कारण उत्पादक अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ नहीं बनाते थे। इन समस्याओं के कारण सरकार ने 1991 में नई आर्थिक नीति प्रारम्भ की।

  • वर्ष 1990 तक देश में उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए गए जिन्हें क्रांतियों का नाम दिया गया-
    • भूरी क्रांति- उर्वरक उत्पादन तथा Non- Conventional Energy Source.
    • श्वेत क्रांति– दुग्ध उत्पादन।
    • नोट:- भारत में ‘डॉ॰ वर्गीज कुरियन’ के नेतृत्व में श्वेत क्रांति की शुरआत हुई।
    • स्वर्णिम क्रांति– मधुमक्खी पालन से।
    • सुनहरी क्रांति– जूट और फल उत्पादन से।

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