skip to Main Content
अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types Of Economy

अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types of Economy

“अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types of Economy” is important topic for all competitive exams like CET (Common eligibility Test), SSC CGL, SSC CHSL, RRB NTPC, UPSC and for other state civil Exams. In these exams, almost 4-5 Questions are coming from Economics. Let’s start Economics topic: अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types of Economy.

अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types of Economy

 

अर्थशास्त्र (Economics):

अर्थशास्त्र (Economics) दो शाब्दों से मिलकर बना है = अर्थ + शास्त्र। अर्थ का मतलब है- ‘धन से संबंधित’ एवं शास्त्र का अर्थ है- ‘अध्ययन’। अतः धन से संबंधित अध्ययन को अर्थशास्त्र कहते हैं।

  • अर्थशास्त्र एक विषय है जिसमें हम आर्थिक सिद्धान्तों को पढ़ते हैं। इसमें आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों के साथ दुर्लभ संसाधनों से मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन तथा उसके वितरण का अध्ययन किया जाता है ताकि सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
  • अर्थशास्त्र (economics) का पिता- एडम स्मिथको माना जाता है, जिनकी प्रसिद्ध पुस्तक थी- The Wealth of Nations”.
आर्थिक वस्तु एवं सेवा- जब सामान्य वस्तु एवं सेवा में उत्पादन की प्रक्रिया जुड़ जाए साथ ही उनमें बाजार मूल्य भी जुड़ जाये तो वह आर्थिक वस्तु बन जाती है। जिस भी वस्तु अथवा सेवा की उपयोगिता (मांग) जितनी ज्यादा होगी उसका बाजार मूल्य उतना ही अधिक होगा।

अर्थव्यवस्था क्या है?

अर्थशास्त्र (Economics) के अध्ययन को जब व्यवहारिक रूप से उपयोग में लाया जाता है तब उसे अर्थव्यवस्था कहा जाता है। जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं, तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था, अर्थशास्त्र का व्यवहारिक रूप है।

अर्थव्यवस्था के प्रकार (Type of economy):-

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy): पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें वस्तु एवं सेवाओं की उत्पति के सभी साधनों पर निजी व्यक्तियों (बाजार) का स्वामित्व व नियंत्रण होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन निजी हित व लाभ प्रेरणा के उद्देश्य से किया जाता है।

  • इस आर्थिक प्रणाली में मूल्य का निर्धारण, बाजार के आधार पर- मांग व पूर्ति पर निर्भर करता है; जिसे ‘बाजार मूल्य प्रणाली’ भी कहा जाता है।
  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सेवाओं और साधनों का वितरण और निर्माण लोगों की क्रय शक्ति के आधार पर होता है न कि उनकी आवश्यकता के आधार पर।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व होता है।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप ना होकर, प्रतिस्पर्धा की नीति को अमल में लाया जाता है जिसमें सरकार नियामक के रूप में केवल नियम बना सकती है।
  • अधिकतर विकसित देशों द्वारा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को ही अपनाया गया है।
  • खामियां (Limitation):- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में सदैव उत्पादन होता है, जिससे मंदी एवं आर्थिक विषमता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy): समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का संचालन एक केन्द्रीय सता द्वारा सामूहिक हित व कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है।

  • समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संसाधनों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होता है।
  • इसमें सेवाओं और साधनों का वितरण लोगों की आवश्यकता के आधार पर होता है न कि उनकी क्रय क्षमता के आधार पर।
  • यहां पर मूल्य के निर्धारण में सरकार का हस्तक्षेप होता है तथा सरकार ही मांग व पूर्ति को नियंत्रित करती है।
  • इस तरह की प्रणाली को ‘प्रशासनिक मूल्य प्रणाली’ भी कहा जाता है।
  • इसमें समाज की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है और यह माना जाता है कि सरकार यह जानती है कि देश के हित में क्या है। अतः लोगों की व्यक्तिगत इच्छाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता।
  • इस अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व होता है तथा नगण्य प्रतिस्पर्धा की नीति को अपनाया जाता है।
  • समाजवाद में एकाधिकार दर्शन होते हैं। सरकार ही तीनों भूमिका नियामक, उत्पादनकर्ता एवं आपूर्तिकर्ता के रूप में होती है।
  • समाजवादी अर्थव्यवस्था को ‘समान अर्थव्यवस्था’ अथवा ‘केन्द्रीय नियोजित’ अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है।
  • खामियां (Limitation):- समाजवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में उत्पादन के स्थान पर वितरण को रखा जाता है जिससे मुद्रास्फीति एवं राजकोषीय घाटा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy): मिश्रित अर्थव्यवस्था पूंजीवादी एवं समाजवादी का मिश्रण होती है।

  • इस अर्थव्यवस्था में कुछ आर्थिक क्रियाओं पर बाजार एवं कुछ पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  • इस अर्थव्यवस्था प्रणाली में, मूल्य निर्धारण बाजार एवं सरकार दोनो द्वारा ही किया जाता है।
  • इसमें सरकार ‘नियामक’ के रूप में कार्य करती है।
  • यह अर्थव्यवस्था कम विकसित और विकासशील देशों में अधिक प्रचलित है।
  • वर्तमान समय में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था लागू है।

4. बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy): वह अर्थव्यवस्था, जिसमें आयात (Import) एवं निर्यात (Export) नहीं होता, बन्द अर्थव्यवस्था कहलाती है।

  • इसे ऐसे समझें, जब कोई देश अपने में ही इतना सक्षम हो कि उसे न कोई निर्यात करना पड़े और न ही आयात करना पड़े तो वहां बन्द अर्थव्यवस्था स्थापित होती है।
  • इस तरह की बन्द अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप में लागू कर पाना किसी भी देश के लिए व्यवहारिक नहीं है परन्तु फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जहां आयात एवं निर्यात नगण्य के बराबर है। यहां लगभग बंद अर्थव्यवस्था पायी जाती है। जैसे कि– ब्राजील, नॉर्वे।

5. खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy): खुली अर्थव्यवस्था वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें समुचित रूप से आयात एवं निर्यात होता है।

  • भारत में, 1990 के बाद समाजवादी अर्थव्यवस्था का पतन होना शुरू हुआ और खुली अर्थव्यवस्था ही एक मात्र विकल्प बची।
  • अर्थशास्त्रियों के अनुसार, खुली अर्थव्यवस्था एक बेहतर विकल्प है जिसमें एक ओर उपभोक्ता को बेहतर विकल्प मिलते हैं तो दूसरी ओर पिछड़े देशों को तकनीकी-ज्ञान प्राप्त होता है।
  • खामियां (Limitation):- खुली अर्थव्यवस्था में कमजोर देशों के बाजार पर विकसित देशों का कब्जा हो जाने का भय बना रहता है जिससे धन का निर्गमन होने लगता है।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Sectors of Economy):-

  1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector):

प्राथमिक क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जहां प्राकृतिक संसाधनों को कच्चे माल के तौर पर प्राप्त किया जाता है।

  • प्राथमिक क्षेत्र में नैसर्गिक उत्पादन होता है और इस उत्पादन से प्राप्त वस्तुएँ- प्राथमिक वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • उदाहरण: कृषि उत्पाद, वानिकी, मत्स्य उद्योग इतियादी।
  1. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector):

द्वितीयक क्षेत्र वह कार्यक्षेत्र है जो पूर्णत: प्राथमिक क्षेत्र पर निर्भर करता है अर्थात् जहां प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को कच्चे माल की तरह उपयोग कर द्वितीयक वस्तु या पक्का माल तैयार किया जाता है, द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है।

  • उदाहरण: उद्योग, रेडीमेड कपड़ा, निर्माण, बिजली उत्पादन इतियादी।
  1. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Section):

वह क्षेत्र जहाँ वस्तुएँ नहीं बल्कि सेवाओं का उत्पादन होता है, तृतीयक क्षेत्र कहलाता है।

  • इसे सेवा-क्षेत्र भी कहा जाता है।
  • इस क्षेत्र को ‘बंद कमरे की गतिविधियां’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • उदाहरण: संचार क्षेत्र, परिवहन, बीमा, बैंकिंग, शिक्षा इतियादी।

Read Also:

If you like and think that Economics topic on “अर्थव्यवस्था और इसके प्रकार – Types of Economy” was helpful for you, Please comment us. Your comments/suggestions would be greatly appreciated.

Back To Top
error: Content is protected !! Copyrights Reserved