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विशेषण और विशेषण के भेद – हिंदी व्याकरण

विशेषण और विशेषण के भेद – हिंदी व्याकरण

इस भाग में हम, हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar का विषय – ‘विशेषण और विशेषण के भेद’ के बारे में जानेंगे। हिंदी विषय को बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं में एक आवश्यक विषय के रूप में लिया जाता है। इन सभी प्रतियोगिताओं में हिंदी विषय में प्रमुख योगदान हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar का है, जिसका एक प्रमुख विषय – ‘विशेषण और विशेषण के भेद’ को हम यहाँ पढ़ रहें हैं:-

विशेषण और विशेषण के भेद  

परिभाषा:

संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाने वाले शब्दों को विशेषण कहते है।

  • उदाहरण : काला घोड़ा, मीठा आम, मोटा आदमी आदि।
  • विशेषण का शाब्दिक अर्थ है – विशेषता बताना।
  • विशेषण एक विकारी शब्द है।
    • विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं।
    • विकारी शब्द चार होते है – संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया।

विशेष्य:

जिन शब्दों (संज्ञा या सर्वनाम) की विशेषता बताई जाए वे विशेष्य कहलाते है।

  • उदाहरण: मोहन सुन्दर बालक है। यहाँ मोहन विशेष्य है और सुन्दर विशेषण है।

प्रविशेषण :

विशेषण शब्द की भी विशेषता बतलाने वाले शब्द प्रविशेषण कहलाते है।

  • उदाहरण: मोहन बहुत सुन्दर बालक है। यहाँ मोहन विशेष्य है, बहुत प्रविशेषण है, सुन्दर विशेषण है।

 

विशेषण के भेद:

 विशेषण मूलतः चार प्रकार के होते है-

  • सार्वनामिक विशेषण
  • गुणवाचक विशेषण
  • संख्यावाचक विशेषण
  • परिमाणबोधक विशेषण

विशेषण के भेद-Hindi grammar-sukrajclasses.com

सार्वनामिक विशेषण:

विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम को सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है या जो सर्वनाम शब्द संज्ञा के लिए विशेषण का काम करते हैं, उन्हें ‘सार्वनामिक विशेषण’ कहते हैं।

  • यह, वह, जो, कौन, क्या, कोई, ऐसा, ऐसी, वैसा, वैसी इत्यादि ऐसे सर्वनाम हैं जो संज्ञा शब्दों के पहले प्रयुक्त होकर विशेषण का कार्य करते हैं, इसलिए इन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जब ये सर्वनाम अकेले प्रयुक्त होते हैं तो सर्वनाम होते हैं।

सार्वनामिक विशेषण के दो उपभेद हैं-

(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण:

जो सर्वनाम बिना रूपान्तर के मौलिक रूप में संज्ञा के पहले आकर उसकी विशेषता बतलाते हैं, उन्हें इस वर्ग में रखा जाता है। जैसे-

    • यह घर मेरा है।
    • वह किताब फटी है।

(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण:

जो सर्वनाम रूपान्तरित होकर संज्ञा शब्दों की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है। जैसे-

    • ऐसा आदमी नहीं देखा।
    • जैसा देश वैसा भेष।

गुणवाचक विशेषण:

जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम के गुण-धर्म, स्वभाव का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक सर्वनाम कहते हैं अर्थात् वह शब्द जो किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्थिति, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद इतियादी के बारे में बताये, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं।

  • गुणवाचक विशेषण अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे – अच्छा, भला, बुरा, काला, लाल, खुश्बूदार, मोटा, छोटा, कठोर, कोमल, खट्टा, मीठा इतियादी।

संख्यावाचक विशेषण :

जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम की संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहा जाता है। जैसे – एक मेज, चार कुर्सियाँ, दस पुस्तकें, कुछ रुपए इत्यादि।

संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं-

(i) निश्चित संख्यावाचक:

जिन विशेषण शब्दों से निश्चित संख्या का बोध होता है, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – चार लड़के, बीस आदमी, सौ रुपये, एक, दो, तीन, पहला, दूसरा, दोनों, तीनों, चारों इत्यादि।

निश्चित संख्यावाचक विशेषणों को प्रयोग के अनुसार निम्न भेदों में विभक्त किया जा सकता है-

    • गणनावाचक:- एक, दो, चार, आठ, बारह, बीस।
    • क्रमवाचक:- पहला, चौथा दसवां, सौवां ।
    • आवृत्तिवाचक:- तिगुना, चौगुना, सौगुना।
    • समुदायवाचक:- चारों, आठों।

(ii) अनिश्चित संख्यावाचक:

जिन विशेषण शब्दों से अनिश्चित संख्या का बोध होता है, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – थोड़े आदमी, कुछ रुपए आदि।

उदाहरण:

    • कुछ आदमी चले गए।
    • कई लोग आए थे।
    • सब कुछ समाप्त हो गया।

परिमाणबोधक विशेषण :

जिन विशेषणों से संज्ञा अथवा सर्वनाम के परिमाण (नाप-तौल) का बोध होता है, उन्हें परिमाणबोधक विशेषण कहते हैं।

परिमाणबोधक विशेषण के भी दो भेद हैं-

(i) निश्चित परिमाणवाचक:

जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा की निश्चित मात्रा का बोध होता है, उन्हें निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – एक लीटर तेल, दस मीटर कपड़ा, दो किलो प्याज आदि।

(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक:

जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा की अनिश्चित मात्रा का बोध होता है, उन्हें अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – थोड़ा दूध, कुछ शहद, बहुत खाना, अधिक पैसा आदि।

 

विशेषण की तुलनावस्था:

  • तुलनात्मक विशेषण, विशेषण संज्ञा शब्दों की विशेषता बतलाते हैं।
  • यह विशेषता किसी में सामान्य, किसी में कुछ अधिक और किसी में सबसे अधिक होती है। विशेषणों के इसी उतार-चढ़ाव को तुलना कहा जाता है।
  • इस प्रकार दो या दो से अधिक वस्तुओं या भावों के गुण, मान आदि के मिलान या तुलना करने वाले विशेषण को तुलनात्मक विशेषण कहते हैं।

हिन्दी में तुलनात्मक विशेषण की तीन अवस्थाएँ हैं।

  1. मूलावस्था
  2. उत्तरावस्था
  3. उत्तमावस्था

मूलावस्था:- इसमें तुलना नहीं होती, सामान्य रूप से विशेषता बतलाई जाती है। जैसे – अच्छा, बुरा, बहादुर, कायर आदि।

उत्तरावस्था:- इसमें दो की तुलना करके एक की अधिकता या न्यूनता दिखाई जाती है; जैसे – मोहन नेहा से अधिक बुद्धिमान है। इस वाक्य में मोहन की बुद्धिमत्ता नेहा से अधिक बताई गई है, अतः यहाँ तुलनात्मक विशेषण की उत्तरावस्था है।

उत्तमावस्था:- इसमें दो से अधिक वस्तुओं, भावों की तुलना करके एक को सबसे अधिक या न्यून बताया जाता है। जैसे – मोहन कक्षा में सबसे अधिक बुद्धिमान है। इस वाक्य में मोहन को कक्षा में सबसे अधिक बुद्धिमान बतलाया गया है अतः यहाँ तुलनात्मक विशेषण की उत्तमावस्या है।

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