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भारत में वर्ष 1991 के बाद हुए आर्थिक सुधार – Economic Reforms In India

भारत में वर्ष 1991 के बाद हुए आर्थिक सुधार – Economic reforms in India

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भारत में वर्ष 1991 के बाद हुए आर्थिक सुधार – Economic reforms in India

यह माना गया है कि वर्ष 1991 से पहले भारत की आर्थिक नीतियों के नियमन एवं नियंत्रण के लिए इतने कानून बनाये गये कि आर्थिक विकास रुक गया।

  • वर्ष 1948 में 23 देशों ने मिलकर एक संगठन- GATT (General Agreement on Trade and Tariff) का गठन किया, जिसका उद्देश्य व्यापार को सुलभ बनाना था।
  • नोट:- वर्ष 1994 में इसका GATT को बदलकर WTO (World Trade Organization) कर दिया गया।

सन् 1991 का आर्थिक संकट:-

  • वर्ष 1991 में भारत को विदेशी ऋणों के बोझ का सामना करना पड़ा। पेट्रोल, डीजल आदि जैसी आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए सामान्य रूप से रखा गया विदेशी मुद्रा रिजर्व 15 दिन के लिए भी पर्याप्त नहीं रह गया था।
  • इस वित्तीय संकट का वास्तविक उद्गम 1980 के दशक का अकुशल आर्थिक प्रबंधन था।
  • इस स्थिति में भारत ने IBRD (International Bank for Reconstruction and Development) यानि विश्व बैंक (World Bank) का सहारा लिया और कुछ शर्तों के साथ भारत 7 बिलयन डॉलर का ऋण प्राप्त करने में सफल रहा।
  • शर्तें जैसे:-
    • भारत अर्थव्यवस्था में उदारीकरण किया जाएगा, निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबंध हटाये जायेंगे।
    • भारत को WTO की सदस्यता लेनी पड़ेगी।

उपरोक्त सभी शर्तों को मान लिया गया तथा नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई।

नई आर्थिक नीति के तहत उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम:-

  • भारत ने 1 जनवरी 1995 में WTO सदस्यता ग्रहण कर ली।
  • 1991 के बाद आरम्भ हुई आर्थिक सुधार नीतियों में प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया गया और केवल निम्नलिखित 6 श्रेणियों को छोड़कर सभी उद्योगों के लिए लाइसेंस व्यवस्था समाप्त कर दी गयी:–
    1. विमानन
    2. अल्कोहल
    3. सिगरेट
    4. इलैक्ट्रॉनिक्स
    5. रसायन
    6. औषधि-भेषज
  • वित्तीय क्षेत्र की सुधार नीतियों का प्रमुख उद्देश्य भारतीय रिजर्व बैंक को नियंत्रक की भूमिका से हटाकर सहायक की भूमिका में रखना था।
  • बैंकों की पूँजी में विदेशी भागीदारी की सीमा को बढाकर 50% तक कर दिया गया।
  • बैंको को बिना अनुमति के नई शाखा खोलने का अधिकार दिया गया।
  • 1991 के बाद भारतीय राजकोषीय नीतियों में बदलाव किए गए:-
    • कर-व्यवस्था में सुधार के साथ साथ सरकार की कराधान और सार्वजनिक व्यय की नीतियों को भी सुधारा गया। करों को कम किया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कर भरें।
    • 1991 के बाद व्यक्तिगत आय पर लगने वाले प्रत्यक्ष-करों में कमी की गयी और अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार किये गए।
    • 1991 में भारतीय मुद्रा (रुपया) का अवमूल्यन किया गया। इससे देश में विदेशी मुद्रा के आगमन में वृद्धि हुई।
    • नोट:- वर्तमान समय में रुपये एवं डॉलर का मूल्य, आयात एवं निर्यात के अनुसार स्वयं निर्धारित होता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का चयन कर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए महारत्न, नवरत्न और लघु रत्न घोषित किया गया।
      • महारत्न:- IOCL, SAIL, ONGC, NTPC, Coal India Ltd, GAIL, BHEL आदि।
      • नवरत्न:- HAL, BEL, MTNL, BPCL, SBI आदि।
      • लघुरत्न:- BSNL, IRCTC आदि।

नई आर्थिक नीति के परिणाम:-

  • अर्थव्यवस्था के खुलने से FDI (Foreign Direct Investment) तथा FII (Foreign Institutional Investment) में तेजी से वृद्धि हुई।
    • FDI (Foreign Direct Investment) विदेशी उद्योगपतियों का भारतीय उद्योगों में निवेश करने से सम्बन्धित है।
    • FII(Foreign Institutional Investment) का संबध केवल पूँजी बाजार (Share market) में निवेश से सम्बन्धित है।
  • FDI वर्ष 1990-1991 में 100 मिलियन डॉलर से बढ़कर, वर्ष 2014-2015 में 5 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।

विनिवेश (Disinvestment):-

सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश या डिसइन्वेस्टमेंट (Disinvestment) कहलाती है। कई कंपनियों में सरकार की काफी हिस्सेदारी है। आम तौर पर इन कंपनियों को सावर्जनिक उपक्रम या पीएसयू कहते हैं।

  • सरकार प्रतिवर्ष सार्वजनिक उद्यमों में विनिवेश का कुछ लक्ष्य निर्धारित करती है, जैसे कि:-
  • वर्ष 1991-1992 = 2500 करोड़।
  • वर्ष 2014-2015 = 56,000 करोड़।
  • वर्ष 2019-2020 =05 लाख करोड़।

नोट:- निजीकरण और विनिवेश में अंतर है। इसे ऐसे समझें, अगर किसी PSU का निजीकरण किया जा रहा है तो उसमें सरकार अपनी 51% से अधिक हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है परन्तु विनिवेश (Disinvestment) की प्रक्रिया में सरकार अपना कुछ हिस्सा बेच देती है, लेकिन PSU में उसका मालिकाना हक बना रहता है।

भारत में वर्ष 1991 के बाद हुए आर्थिक सुधार – Economic reforms in India

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