सौरमंडल (Solar System)- Part II – Satellite, Asteroids, Comets etc.
Here we are providing you topic of Competitive Geography – “सौरमंडल (Solar System)” which is important for all competitive exams like CET (Common eligibility Test), SSC CGL, SSC CHSL, RRB NTPC, UPSC and for Other State PCS Exams. In these exams, almost 4-5 Questions are coming from Geography:-
सौरमंडल (Solar System)
Part -II
उपग्रह (Satellite):
उपग्रह वो खगोलीय पिंड हैं, जो एक निश्चित मार्ग पर पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल के साथ ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। प्राकृतिक उपग्रह का उदाहरण: चंद्रमा।
- चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।
मानव निर्मित उपग्रह: मानव निर्मित उपग्रह एक कृत्रिम पिंड है ये उपग्रह वैज्ञानिकों के द्वारा बनाया गया एवं इनको पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया है जिनका उपयोग ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं पृथ्वी पर संचार माध्यम के लिए किया जाता है। उदाहरण: इनसेट, आई.आर.एस., एडुसेट आदि।
चंद्रमा (Moon):
- चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।
- चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता, यह सूर्य की उर्जा से ही प्रकाशित होता है।
- अत: चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा को होता है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है और चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता।
- चंद्रमा, पृथ्वी की एक परिक्रमा लगभग 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट 15 सेकेंड में करता है तथा लगभग इतने ही समय में यह अपने अक्ष पर एक चक्कर (घूर्णन) भी पूरा करता है, यही कारण है कि पृथ्वी से चंद्रमा का एक ही भाग दिखाई देता है।
- चंद्रमा का अध्ययन करने वाले विज्ञान को सेलेनोलॅाजी (Selenology) कहा जाता है।
- चंद्रमा की पृथ्वी से औसत दूरी 3,84,400 किमी है।
- यह आकार में पृथ्वी के एक चौथाई है।
- चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में 1/6 है।
- यहां दिन का तापमान 100°c और रात का तापमान -180°c होता है।
- चंद्रमा पर उच्चतम पर्वत का नाम लीबनिट्ज है, जिसकी ऊँचाई 35000 फुट (10668 मी.) है।
- चंद्रमा को जीवाश्म ग्रह भी कहा जाता है।
- सबसे पहली बार चंद्रमा पर जुलाई 1969 में, अपोलो-ll अंतरिक्ष यान से, नील आर्मस्ट्रांग तथा एडविन आल्ड्रिन पहुँचे थे।
सौरमंडल (Solar System)
क्षुद्रग्रह (Asteroids):
ग्रहों, उपग्रहों की तरह असंख्य छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन्हीं पिंडो में से कुछ पिंड जो आकार में ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं, उन्हें क्षुद्रग्रह कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्षुद्रग्रह उन ग्रहों के टुकड़े हैं जो बहुत वर्ष पहले विस्फोट के कारण ग्रहों से टूट कर अलग हो गए थे।
- “फोर वेस्टा” एकमात्र क्षुद्र ग्रह है जिसे पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है।
क्षुद्रग्रह घेरा (Asteroids Belt):
क्षुद्रग्रह घेरा (Asteroids Belt) हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह की कक्षाओं के बीच स्थित है और जिसमें असंख्य क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं।
- सेरेस नाम का बौना ग्रह भी क्षुद्रग्रह घेरा में ही है जो अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षक खिचाव से गोल अकार पा चुका है।
काइपर घेरा (Kuiper Belt):
सौरमंडल के अंतिम ग्रह (नेपच्यून) की कक्षा के बाहर एक क्षेत्र है इस क्षेत्र में कई छोटे-छोटे पिंड पाए जाते हैं जो की सौरमंडल के बनने के बाद बच गए थे। इन पिंडों का घेरा ही काइपर घेरा (Kuiper Belt) कहलाता है।
- नेपच्यून ग्रह की कक्षा के बाहर से शुरू होकर यह सूर्य से 50 (A.U.) एस्टॉनोमिकल यूनिट की दूरी तक फैला हुआ है।
- एस्टेरॉइड बेल्ट की तुलना में कुइपर/काइपर बेल्ट का आकार बहुत बड़ा है, यह एस्टेरॉइड बेल्ट से लगभग 20 गुना ज्यादा चौड़ा तथा 200 गुना ज्यादा विस्तृत है।
- इस बेल्ट में तीन बौने ग्रह– प्लूटो (Pluto), मेकमेक (Makemake), हुमा (Haumea) पाये जाते हैं।
सौरमंडल (Solar System)
उल्का और उल्कापिंड (Meteor and Meteorite):
सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को “उल्कापिंड” कहते हैं।
कभी-कभी ये पिंड आकाश में एक ओर से दूसरी ओर बहुत ही तेजी से जाते हुए धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं और वायुमंडल में प्रवेश करते समय वायु से घर्षण के कारण इतनी ऊष्मा (heat) उत्पन्न हो जाती है कि ये जलना शुरू कर देते हैं, जिससे चमकदार प्रकाश उत्पन्न हो जाता है; जो एक चमकीली रेखा के रूप में नजर आता है। आमतौर पर ये पत्थर के टुकड़े जलकर राख हो जाते हैं, जिन्हें “उल्का” कहते हैं।
- कई बार बिना जले (दहन) साबुत उल्कापिंड भी पृथ्वी की सतह पर गिर जाते हैं।
सौरमंडल (Solar System)
धूमकेतु या पुच्छल तारे (Comets):
धूमकेतु पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है यह ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते है।
- सूर्य की एक परिक्रमा करने में धूमकेतु को हजारों, लाखों, करोड़ो वर्ष लग जाते हैं।
- ये पृथ्वी से केवल तभी दिखाई पड़ते हैं जब वे सूर्य के बहुत निकट आ जाते हैं।
- धूमकेतु के तीन मुख्य भाग होते है – नाभि, कोमा और पूछ।
- नाभि धूमकेतु का केन्द्र होता है जो पत्थर और बर्फ का बना होता है। नाभि के चारों ओर गैस और घुल के बादल को कोमा कहते है। नाभि तथा कोमा से निकलने वाली गैस और धूल एक पूंछ का आकार ले लेती है।
- धूमकेतु जब सूर्य के निकट आते हैं जो जलने लगते हैं और फिर इनका सिर एक चमकते हुए तारे जैसा नजर आता है और पूंछ अतिचमकीली जलती हुई नजर आती है, इसलिए इसे पुच्छल तारा भी कहते हैं।
- धूमकेतु की पूँछ सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में ही रहती है।
- जब ये सूर्य से दूर चले जाते हैं तो फिर से यह ठोस रूप लेकर धूल और बर्फ पुन: नाभिक में जम जाती है। जिसके कारण इनकी पूंछ छोटी होती जाती है और अक्सर यह पूंछ विहीन हो जाते हैं।
- कुछ धूमकेतु एक निश्चित समय के बाद ही दिखाई देते हैं। सबसे प्रसिद्ध हैली का धूमकेतु है – ‘हेली’ नामक धूमकेतु लगभग 76 वर्ष के बाद पृथ्वी से दिखाई देता है। अंतिम बार हेली धूमकेतु 1986 में,उससे पहले 1910 में दिखाई दिया था। अत:, यह हमे पुन: 1986+76 = 2062 में दिखाई देगा।
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