राजकोषीय नीति (Fiscal Policy – Tools & Objectives)
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राजकोषीय नीति (Fiscal Policy – Tools & Objectives)
राजकोषीय नीति क्या है?
- राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) सरकार की आर्थिक नीति का एक प्रमुख घटक है जिसके द्वारा आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय, मूल्य स्थिरता, पूर्ण रोजगार सृजन एवं संसाधनों की गतिशीलता आदि लक्ष्यों की पूर्ति की जाती है।
- इस निति में कर एवं कराधान, सार्वजनिक व्यय एवं ऋण जैसे उपकरणों की सहायता से ऊपरलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है।
- राजकोषीय नीति का निर्माण तथा क्रियान्वयन वित्त मंत्रालय द्वारा बजट के माध्यम से किया जाता है तथा वित्तमंत्री वर्ष में एक बार बजट के माध्यम से इसे प्रस्तुत करता है।
- इस नीति को आय एवं व्यय नीति, बजटीय नीति तथा कराधान नीति के नाम से भी जाना जाता है।
- अत: यह स्पष्ट है कि राजकोषीय नीति, राष्ट्र की विकास-नीति की केंद्र बिन्दु है जिसका एक राष्ट्र के आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रमुख योगदान होता है।
राजकोषीय नीति के उद्देश्य:-
- संसाधनों की गतिशीलता– सरकार अपनी नीतियों के द्वारा तीनो क्षेत्रों- प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्र के बीच संतुलन बनाते हुए, अपने सभी संसाधनों में गतिशीलता लाने का प्रयास करती है।
- मूल्य स्थिरता (Price stability)– अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाये रखना मौद्रिक नीति के अंतर्गत आता है, परन्तु मूल्य स्थिरता को बनाये रखना राजकोषीय नीति का भी उद्देश्य है, जिससे की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फिति (inflation) को कम रखा जा सके।
- सामाजिक न्याय– राजकोषीय नीति के द्वारा सरकार ‘कर नीति’ को लागू करती है, जिसके अनुसार उच्च वर्ग से अधिक कर तथा गरीब एवं निम्न वर्ग के लोगों से कम अथवा कोई कर नहीं लिया जाता है ताकि समाज में सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके।
- पूर्ण रोजगार सृजन– अपने सभी नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराना एवं राष्ट्र की बेरोजगारी दर को कम से कम रखना सरकार का प्रमुख उद्देश्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार अपनी राजकोषीय नीति बनाते समय केवल मुनाफे को ही नहीं बल्कि रोजगार सृजन को भी ध्यान में रखती है। उदाहरण: मनरेगा योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act, 2005 – MGNREGA)।
- भुगतान संतुलन एवं संतुलित विकास– इस नीति के द्वारा सरकार अपने राष्ट्र के आयात एवं निर्यात में भुगतान संतुलन को बनाये रखती है, जिससे कि राष्ट्र का संतुलित विकास संभव हो सके।
राजकोषीय नीति के उपकरण:-
- कर एवं कराधान–
- कर ही राष्ट्र की आय का मुख्य स्रोत हैं।
- कर एवं कराधान नीति के द्वारा एक प्रकार से सरकार राष्ट्र की आय को निर्धारित करती है।
- करों को निर्धारित करके सामाजिक न्याय एवं संतुलित विकास जैसे उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।
- सार्वजनिक व्यय– सरकार सार्वजनिक व्यय की घोषणा करके, आने वाले साल के लिए अपने खर्चों का एक विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करती है, जिससे यह पता चलता है कि सरकार किस क्षेत्र में कितना व्यय करने वाली है।
- सार्वजनिक ऋण–
- सरकार उस स्थिति में मुनाफे में नहीं रहती है, जब कुल व्यय, कुल आय से अधिक होता है। ऐसी स्थिति में घाटे का वित्तपोषण करने के लिए सार्वजनिक ऋण लिया जाता है।
- सरकारें सार्वजनिक ऋण दो प्रकार से प्राप्त करती हैं- 1) आंतरिक ऋण, जो कि राष्ट्र के लोगों से ही बॉण्ड के माध्यम से लिया जाता है और 2) बाहरी ऋण, जो अन्य देशों या अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से लिया जाता है।
- निवेश एवं विनिवेश नीति–
- नए रोजगार सृजन एवं अपनी आय को बढ़ाने के लिए सरकार राजकोषीय नीति में आने वाले वर्ष के लिए निवेश एवं विनिवेश को बता कर ये स्पष्ट करती है कि किस क्षेत्र में कितना निवेश एवं किस क्षेत्र से विनिवेश किया जाएगा।
- भारत के संदर्भ में राजकोषीय नीति अपनी व्यापकता एवं प्रभावशीलता के कारण विकास रणनीति के केंद्र में अवश्य है, परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं जो कि आगे दर्शायी गयी हैं:-
राजकोषीय नीति को प्रभावित करने वाले कारक (Fiscal Policy Limits):-
- नीति की आवश्यकता के वक्त उसके लागू होने और प्रभावी होने में अधिक समय लग जाना।
- राजकोषीय नीति से न तो ब्याज दर प्रभावित होती है और न ही उपभोक्ता का व्यवहार, अतः राजकोषीय नीति बहुत सीमित है।
- सरकारों के लोक लुभावन कार्यक्रमों एवं योजनाओं के कारण व्यय में वृद्धि होती है जिससे राजकोषीय नीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- राजकोषीय नीति में अधिक विस्तारवादी रुख से सरकार निजी क्षेत्र को दुष्प्रभावित भी कर सकती है।
इससे ये स्पष्ट है कि राजकोषीय नीति का क्रियान्वयन, प्रशासनिक तंत्र की कुशलता पर ही निर्भर करता है।
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