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मौद्रिक नीति (Monetary Policy And It’s Tools) – Competitive Economics

मौद्रिक नीति (Monetary Policy and It’s Tools) – Competitive Economics

“मौद्रिक नीति (Monetary Policy and It’s Tools)” is important topic for all competitive exams like CET, SSC CGL, RRB NTPC, UPSC etc. In these exams, almost 4-5 questions are coming from Economics. Let’s start Economics topic: मौद्रिक नीति (Monetary Policy and It’s Tools).

मौद्रिक नीति (Monetary Policy and It’s Tools)

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) क्या होती है?

मौद्रिक नीति वह साधन है जिससे किसी भी राष्ट्र का केंद्रीय बैंक विभिन्न उपकरणों जैसे:- कैश रिजर्व रेश्यो (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात (SLR- Statutory liquidity ratio), बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर आदि का उपयोग करके मुद्रा और ऋण की उपलब्धता पर नियंत्रण स्थापित करता है।

नोट: भारत में केंद्रीय बैंक “भारतीय रिजर्व बैंक” है।
  • किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुद्रा पर उपयुक्त नियंत्रण रखना अति आवश्यक होता है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति से अर्थव्यवस्था में मुद्रा के संकुचन एवं प्रसार को नियंत्रित करता है।
  • भारत में मौद्रिक नीति को MPC (Monetary Policy Committee) द्वारा प्रत्येक 2 माह में बनाया जाता है।
  • मौद्रिक नीति (Monetary Policy ) बनाने वाली इस MPC में 6 सदस्य होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता रिजर्व बैंक का गवर्नर करता है।

मौद्रिक नीति के उद्देश्य (Objectives of Monetary Policy):–

मौद्रिक नीति (Monetary Policy’s Tools – sukrajclasses.com

  • वित्तीय/मूल्य स्थिरता:
    • मूल्य स्थिरता का सामान्य अर्थ है- बाजार में उत्पादों के मूल्य में तेज गिरावट या बढ़ोतरी को रोकना।
    • यदि किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण न रखा जाये तो उस अर्थव्यवस्था में स्थिरता समाप्त हो जाएगी। उदाहरण के लिए यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाए तो लोगों के पास क्रय शक्ति बढ़ जाएगी जिससे की उत्पादों के दाम बढ़ने लगेंगे और मुद्रास्फीति प्रभावित होगी।
    • अतः मौद्रिक नीति से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाए रखता है।
  • विनिमयन दर से स्थायित्व:
    • विनिमयन दर में स्थायित्व से अभिप्राय भारतीय मुद्रा की विदेशी मुद्रा से तुलनात्मक मूल्य से है।
    • यदि विनिमयन दर पर नियंत्रण न रखा जाए तो भारतीय मुद्रा का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिर सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था दुष्प्रभावित होगी।
  • रोजगार सृजन: मौद्रिक नीति के द्वारा रोजगार सृजन को भी बढ़ावा दिया जाता है परन्तु मौद्रिक नीति में रोजगार सृजन को वित्तीय/मूल्य स्थिरता के लक्ष्य के बाद ही स्थान दिया जाता है।
  • विकास: मौद्रिक नीति, देश की आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण घटक है। देश का आर्थिक विकास ही मौद्रिक नीति का परम उद्देश्य है।

मौद्रिक नीति के प्रमुख उपकरण (Monetary policy tools):– 

मौद्रिक नीति के दो तरह के उपकरणों का प्रयोग करती है–

    1. प्रत्यक्ष उपकरण
    2. अप्रत्यक्ष उपकरण

1. प्रत्यक्ष उपकरण:- वे उपकरण जो मुद्रा की मात्रा पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखते हैं।

  • कैश रिजर्व रेश्यों (CRR – Cash Reserve Ratio):

सभी बैंकों को अपने पास उपलब्ध पैसों (बैंक के उपभोक्ताओं द्वारा जमा किया गया) में से केंद्रीय बैंक (RBI in India) के पास कुछ पैसा रिजर्व रखना अनिवार्य होता है जिसे एक निश्चित अनुपात में ही रखा जाता है, कैश रिजर्व रेश्यों (CRR) कहलाता है।

    • भारत में वर्तमान समय में CRR 4% है, जोकि समय समय पर बदलती रहती है।
    • जिस समय केंद्रीय बैंक को अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को कम करना होता है वो CRR को बढ़ा देती है, जिससे की बैंको के पास, उपलब्ध मुद्रा में कमी आती है और बैंक लोन देने में कमी करते है।
    • इसके ठीक विपरीत अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ाने के लिए CRR को घटा दिया जाता है।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR – Statutory liquidity ratio):

यह बैंकों के पास जमा राशि का वह भाग होता है, जिसे बैंकों को अपने पास सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है यानि कि इन पैसों में से बैंक किसी को लोन नहीं दे सकता।

    • CRR की भांति ही ये अनुपात को भी कम व ज्यादा करके केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ा व घटा सकता है।
    • भारत में वर्तमान समय में SLR 18% है, जोकि समय समय पर बदलती रहती है।

2. अप्रत्यक्ष उपकरण:- वे उपकरण जो साख सृजन (Credit Creation) की मात्रा पर नियंत्रण रखते हैं।

  • बैंक दर (Bank Rate): यह वह ब्याज दर है जिस पर सभी बैंक, रिजर्व बैंक से दीर्घ अवधि के लिए लोन लेते है।
    • इस ऋण के लिए बैंकों को रिजर्व बैंक के पास कोई भी सिक्योरिटी गिरवी नहीं रखनी पड़ती है।
    • मुद्रास्फीति (inflation) के समय महंगाई को कम करने के लिए रिजर्व बैंक, बैंक दर को बढ़ाकर लोन को महंगा कर देता है, जिससे बैंकों के लिए लोन लेना महंगा हो जाता है जिसके परिणाम-स्वरूप बैंक भी अपने ब्याज दरों में वृद्धि कर देते हैं जिससे आम उपभोक्ता के लिए भी लोन लेना महंगा हो जाता है। इस तरह अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है।
  • रेपो दर (Repo Rate): रेपो दर भी एक तरह की ब्याज दर है जिसे बैंको को रिजर्व बैंक से लोन लेने पर देना पड़ता है।
    • रेपो दर बैंको द्वारा लिए गए अल्पकालीन ऋणों पर लगाया जाता है। इन ऋणों पर बैंक को रिजर्व बैंक के पास सिक्योरिटी गिरवी रखनी पड़ती है।
    • बैंक दर की तरह ही मौद्रिक नीति में इसे भी कम व ज्यादा किया जाता है।
  • रिवर्स रेपो दर (RRR): रिवर्स रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक, अपने ग्राहक बैंकों से कम अवधि के लिए लोन लेता है।
मौद्रिक नीति को प्रभावित करने वाले कारक (Monetary policy limits):–  

वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में राजकोषीय नीति का मौद्रिक नीति से अधिक महत्व है। मौद्रिक नीति को सीमित करने वाले कुछ निम्नलिखित कारण हैं-

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा क्षेत्र ऐसा भी है जोकि नगद में लेन देन करता है जिस कारण यहां मौद्रिक नीति अप्रभावी हो जाती है।
  • ब्लैक इकोनॉमी (काली अर्थव्यवस्था) की मौजूदगी से भी मौद्रिक नीति प्रभावित होती है। ब्लैक इकोनॉमी में सभी लेन देन बिना कागजी कार्यवाही के नगद में किये जाते हैं।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (NBFC’s – Non-bank financial institution) का भारत में बड़ी मात्रा में सक्रीय होना भी भारतीय मौद्रिक नीति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है क्योंकि मौद्रिक नीति का NBFC’s पर कोई नियंत्रण नहीं है।
  • सरकारों द्वारा लोक लुभावन योजनाएँ, विदेशी निवेश एवं अन्य कारण भी मौद्रिक नीति को प्रभावित करते हैं।

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