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ब्रह्माण्ड (The Universe) और इसके घटक

ब्रह्माण्ड (The Universe) और इसके घटक

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ब्रह्माण्ड (The Universe) और इसके घटक

ब्रह्माण्ड के अंतर्गत सभी आकाशीय पिंड, सम्पूर्ण सौरमंडल (ग्रह, सूर्य, चंद्रमा, उल्कापिंड, क्षुद्र ग्रह), गैलेक्सियाँ, खगोलीय पिण्ड, तारे और गैलेक्सियों के बीच के अंतरिक्ष की अंतर्वस्तु, सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा सम्मिलित है। Universe-sukrajclasses.com

अत: हम कह सकते है अस्तित्वमान द्रव्य और ऊर्जा के सम्मिलित रूप को ब्रह्मांड कहते हैं।

  • हमारी पृथ्वी सौरमंडल की सदस्य है और हमारा सौरमंडल, हमारे ब्रह्मांड का एक मामूली सा हिस्सा है।
  • ब्रह्माण्ड का ना तो कोई केंद्र है और ना ही कोई प्रारम्भिक एवम् अंत बिंदु है।
  • ब्रह्माण्ड अनंत व असीमित है।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति

ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई सिद्धांत प्रचलित हैं जिसमें ‘बिग बैंग सिद्धांत’ सर्वाधिक प्रचलित एवं मान्य है।

इसे ‘विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना’ भी कहा जाता है 1920 ई0 ऐडविन हबल नामक वैज्ञानिक ने इसके प्रणाम दिए। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दुसरे से दूर हो रही है परिणामस्वरूप  ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है।

‘बिग बैंग सिद्धांत’

‘बिग बैंग सिद्धांत’ का प्रतिपादन बेल्जियम के खगोल ‘जॉर्ज लैमेंतेयर’ ने 1960- 1970 ई0 में किया गया।

वैज्ञानिकों का मत है की बिग बैंग की घटना आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व हुई।

‘बिग बैंग सिद्धांत’ के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ :

  • भारी पदार्थों से निर्मित एक गोलाकार सूक्ष्म पिंड था, जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म और ताप व घनत्व अनंत था, इसके अंदर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
  • माना जाता है की बिग बैंग होने के शुरुआत के तीन मिनट अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
  • बिग बैंग होने के लगभग 3 लाख वर्षो के दौरान तापमान 4500 (केल्विन) तक गिर गया, जिससे परमाणविक पदार्थ का निर्माण हुआ और ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
  • कुछ अरब वर्ष बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम के बादल संकुचित होकर तारों एवं आकाशगंगाओं का निर्माण करने लगे।
  • बिग बैंग घटना के पश्चात आज से लगभग 5 अरब पूर्व सौरमण्डल का विकास हुआ, जिससे ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ।

‘होयल’ की “स्थिर अवस्था संकल्पना’:

  • ‘होयल’ ने ‘विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना’ के विपरीत ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ प्रस्तुत की।
  • ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार लगातार हो रहा है लेकिन इसका स्वरूप किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है।

किंतु वर्तमान में वैज्ञानिक समुदाय ‘विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना’ के पक्षधर हैं।

आकाशगंगा एवं निहारिक

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निहारिका परिकल्पना:

इस परिकल्पना के अनुसार , ग्रहों का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल (जिसमें धूल, हाइड्रोजन गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा) से हुआ जो कि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे ।

  • 1796 ई ० में गणितज्ञ लाप्लेस ने नीहारिका परिकल्पना का सिद्धांत दिया था।

मंदाकिनी/आकाशगंगा (Galaxy):

मंदाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो धुँधला-सा जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल का मिश्रण है।

  • ब्रह्माण्ड में अनेकों मंदाकिनियां अस्तित्व में है।
  • पृथ्वी की मंदाकिनी को आकाशगंगा या दुग्धमेखला के नाम से जाना जाता है।
  • आकाशगंगा के सबसे नजदीकी मंदाकिनी देवयानी (एण्ड्रोमेडा) है
  • गैलेक्सियों को उनके आकार के आधार पर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया हैं-
    1. सर्पिल गैलेक्सी
    2. दीर्घवृत्तीय गैलेक्सी
    3. अनियमितत गैलक्सी
  • आकाशगंगा (मंदाकिनी) का अधिकतर भाग का आकार सर्पिलाकार है, सर्पिल मंदाकिनी को सबसे पहले “गैलिलियों” ने देखा था।
  • ओरियन नेबुला’ आकाशगंगा (पृथ्वी की मंदाकिनी) का सबसे शीतल तथा चमकीले तारों का क्षेत्र है।
  • आकाशगंगाओं के ‘प्रतिसरण नियम’ के प्रतिपादक ‘एडविन हब्बल’ थे। इन्होनें 1920 ई0 में इसके प्रणाम दिए।
  • पृथ्वी से हमारी आकाशगंगा की जो भुजा दृश्यमान होती है उसे “मिल्की वे” कहा जाता है।

तारे (Stars):

तारे(stars)चमकने वाले पिण्ड है। इनका अपना खुद का प्रकाश तथा ऊष्मा ऊर्जा होती है। stars in Universe-sukrajclasses.com

  • सामान्यता एक तारा 70% हाइड्रोजन, 28% हिलीयम, 1.5% कार्बन,नाइट्रोजन और नियान, 0.5% आयरन तथा अन्य गैसों से मिलकर बना होता है।
  • सूर्य पृथ्वी का सबसे निकटतम तारा है।
  • सूर्य के पश्चात् सबसे निकटवर्ती तारे का नाम प्राक्सिमा सैंटोरी (α Centauri) है, जिसका प्रकाश पृथ्वी पर लगभग 4 वर्ष में पहुंच पाता है।
  • आकाश में सबसे तेज चमकने वाला तारा साइरस है।
  • पृथ्वी के निकटतम तारे क्रमानुसार क्रमशः है- प्राक्सिमा सैंटोरी, अल्फा, बनार्ड तारा।

पोल स्टार (Pole Star): पृथ्वी के ध्रुव पर 90 अंश  का कोण बनाने वाला तारा पोल स्टार कहलाता है।

ध्रुव तारा: ध्रुव तारा हमेशा उत्तरी ध्रुव पर स्थित रहता हैं। यह आकाश में हमेशा एक ही स्थान पर रहता है।  यह ‘लिटिल बियर तारा समूह’ में से आता है।

पल्सर : सबसे तेज घुमने वाले तारे को पल्सर कहा जाता है | सभी पल्सर (Pulsar), न्यूट्रॉन तारे (Neutron Star) हैं लेकिन सभी न्यूट्रॉन तारे पल्सर नहीं हैं।

तारों का जीवन चक्र :

आदि तारा: हाइड्रोज एवं हीलियम गैसों के पिण्डो के अणु परस्पर गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण संघनित होने लगते हैं यह तारे की प्रारंभिक अवस्था होती है, जो आदि तारा कहलाती है।

लाल भ्रूण तारा: तारे के विकास की यह दूसरी अवस्था होती है। इस अवस्था में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस के अणु-परमाणु के परस्पर टकराव एवं संघनन की प्रक्रिया के कारण तारों में अत्यधिक ताप वृद्धि हो जाती है, जिससे तारे का रंग लाल दिखाई पड़ने लगता है। तारे की यह अवस्था ही लाल भ्रूण तारा कहलाती है।

युवा पीला तारा: तारे की इस तीसरी अवस्था में तारे में मौजूद हाइड्रोजन गैस का हीलियम गैस के रूप में संलयन प्रारंभ हो जाता है। तारे की यह अवस्था युवा पीला तारा है।

लाल दानव तारा: युवा अवस्था के बाद तारे में हाइड्रोजन कम होने लग जाती है। तो इसकी बाहरी सतह फूलने लगती है और तारा लाल हो जाता है। यह तारें के अंतिम समय की पहली निशानी है, ऐसे तारे को लाल दानव (red giant) कहते हैं।

लाल दानव के बाद तारे में दो स्थितियों में से कोई एक स्थिति आती है या तो वह श्वेत वामन तारे में बदलता है या फिर न्युट्रान तारें मे।

श्वेत वामन तारा :यदि तारे का प्रारंभिक दव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के बराबर हो तो वह श्वेत वामन तारा बनता है यह बहुत छोटा,गर्म तारा होता है तथा इसके जीवन चक्र की अंतिम अवस्था सूर्य की तरह होती है।

न्युट्रान तारा : यदि तारे का प्रारंभिक द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से बहुत अधिक हो तो उसका अंत अत्यंत विस्फोटक होता है या न्युट्रान तारा बनता है।

अत: लाल दानव तारें का भविष्य उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है।

नोवा तथा सुपरनोवा : लाल दानव तारे की अवस्था के पश्चात् जब तारे के केवल बाह्य हिस्से (कवच) में विस्फोट की स्थिति उत्पन्न होती है तो उसे नोवा कहते हैं। नोवा की यह घटना तब घटित होती है जब तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक हो जाता है।

उसके विपरीत जब कभी संपूर्ण तारे में विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो उस घटना को सुपरनोवा कहा जाता है।

कृष्ण छिद्र/ ब्लैक होल: अत्यधिक द्रव्यमान वाले वे तारे जिनका जीवन समय खत्म हो जाता है; कृष्ण छिद्र बनाते है। कृष्ण छिद्र में द्रव्यों का घनत्व नही मापा जा सकता है।

कृष्ण छिद्र का गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत प्रबल होती है। फलस्वरूप जब यहाँ से प्रकाश की किरण गुजरती है तो वह उसमें समाविष्ट हो जाती है, प्रकाश का परावर्तन नहीं हो पाता तो इसी तारे को ब्लैक होल कहा जाता है।

तारामंडल:

आकाश गंगा में कुछ सुयोजित एंव आकर्षक आकृतियों के रूप में पाए जाने वाले तारों का समूह को तारामंडल कहा जाता है। जैसे- मन्दाकिनी आकाशगंगा में पाया जाने वाला सप्त ऋषि मंडल, ओरिआन, हाइड्रा, ध्रुवतारा हरकुलिज इत्यादि तारामंडल के उदाहरण है।

  • बहुत कम तारे लगभग 25% ही एकल अवस्था में होते है।
  • युग्म अवस्था में लगभग 33% होते है जो बाइनरी तारे कहलाते है।
  • एल्फा सैन्चुरी तीन तारों से से मिलकर बना है।
  • कैस्टर (मिथुन) छः तारे से मिलकर बना है।
  • अन्य तारे बहुसंख्यक तारे कहलाते है।

सौरमण्डल (Solar System): सूर्य और उसके चारों ओर परिक्रमा करने वाले ग्रहों (8), उपग्रहों, धूमकेतुओं, उल्काओं और अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सौरमंडल कहते हैं. सौरमंडल के पूरे ऊर्जा का स्रोत सूर्य है।

सौरमण्डल के बारे में हम आगे विस्तार से पढ़ेगें :   सौरमण्डल (Solar System)

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