हरियाणा में कुणिन्द गणराज्य – Haryana History
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मौर्य साम्राज्य के बाद उभरने वाले गणराज्यों में कुणिन्द भी एक महत्वपूर्ण गणराज्य था। यह गणराज्य मुख्यतः उतराखंड, उत्तर-प्रदेश और उतरी हरियाणा के छोटे से क्षेत्र में फैला था। इस गण के अस्तित्व का पता हमे कुणिन्दों सिक्कों की प्राप्ति से चलता है:
- कुणिन्द कालीन सिक्के हरियाणा के सदौरा, नारायणगढ़, बड़ी करोड़ी, छोटी करोड़ी, मदलपुर तथा करनाल से प्राप्त हुए हैं। ये सिक्के दर्शातें हैं कि हरियाणा का केवल छोटा सा क्षेत्र- अंबाला जिले का कुछ ऊपरी भाग ही इस गणराज्य के अंतर्गत आता था।
- सिक्कों के अतिरिक्त पाणिनी के अष्टाध्यायी, पुराण तथा वराहमिहर की पुस्तक – वह्तसंहिता में इस गणराज्य का उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के कथनानुसार ये उत्तरपूर्व के निवासी थे।
- पाणिनी की पुस्तक अष्टाध्यायी में कुणिन्दों को कुलुन कहा गया है।
- कुषाणों के विरुद्ध इस गण ने यौघेयों के साथ मिलकर संघर्ष किया था। बाद में कुणिन्दों ने यौधेय गणराज्य में अपना विलय कर लिया।
- डॉ० अल्तेकर के अनुसार यौधेय गण के सिक्कों पर जो ‘द्वि’ शब्द अंकित है, वह इन दो गणों के मिलन का ही प्रतीक है।
- कुणिन्द अपना शासन – भगवान चित्रेश्वर (शिव) के नाम पर करते थे।
- विष्णु पुराण में कुणिन्दों को कुणिन्द पल्यकस्य कहा गया है।
- ग्रीक विद्वान टालेमी ने भी इस गण राज्य का उल्लेख किया है।
उपरोक्त साक्ष्यों से यह पता चलता है कि कुणिन्दों ने लगभग 500 ई०पू० एक गणतंत्र राज्य की स्थापना की, जिसका एक हिस्सा हरियाणा के वर्तमान अम्बाला जिले का क्षेत्र भी था। इनका कुषाणों से युद्ध चलता रहा और अंततः यौधयों में इनका विलय हो गया।
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