skip to Main Content
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

This topic of Ancient History of India  – “सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)”, is important for all competitive exams like CET (Common eligibility Test), SSC CGL, SSC CHSL, RRB NTPC, UPSC and other State PCS Exams. In these exams, almost 4-5 Questions are coming from History. Let’s start the Topic – सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization):-

हड़प्पा सभ्यता / सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसा पूर्व – 1750 ईसा पूर्व)

Harappa Civilization /Indus Valley Civilization (BC 2500 – BC 1750).

इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योकि पाकिस्तान के शाहीवाल जिले के हड़प्पा नामक स्थल से सर्वप्रथम 1921 में इस सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई।

सिन्धु घाटी सभ्यता सिन्धु नदी के इर्द-गिर्द बसी हुई थी इसीलिए इस सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। indus valley civilization sukrajclasses.com

  • हड़प्पा स्थल की खोज “दयाराम साहनी” द्वारा “1921” में किया।
  • वर्तमान में हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल लगभग 1,2,99,600 km है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पश्चिमी पुरास्थल सुत्कगेन्डोर (बलूचिस्तान) के मकरान तट से पूर्व में आलमगीर पुर (उत्तर प्रदेश) एवं उत्तर में मांदा (जम्मू-कश्मीर) से लेकर दक्षिण में दाइमाबाद (महाराष्ट्र) नर्मदा नदी के पास तक था।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता अपनी नगर व्यवस्था के लिए विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इतनी उच्चकोटि की “सुव्यवस्थिता” अन्य किसी सभ्यता (समकालीन मेसोपोटामिया आदि) में नहीं मिलती।
  • सिन्धु अथवा हड़प्पा सभ्यता के नगर का अभिविन्यास शतरंज पट (ग्रिड प्लानिंग) की तरह था।
  • हड़प्पा सभ्यता की सभी सड़के सीधी थी और नगर को आयताकार भाग में काटती थी।
  • हड़प्पा सभ्यता एक ‘शिक्षित सभ्यता’ थी। लोग पढ़ना लिखना जानते थे।
  • हड़प्पा सभ्यता की लिपि – चित्रात्मक थी। harappa lipi sukrajclasses.com
  • लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
  • इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिह्न हैं।
  • ये लिपि दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी। इस पद्धति को “बूस्ट्रोफेडन” कहा गया है।

 

सैन्धव सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल (Important Places of Indus Valley Civilization):-

हड़प्पा

  • हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के शाहीवाल जिले में सिन्धु नदी की तीसरी साहयक नदी – रावी नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है।
  • 1921 में दयाराम साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स द्वारा इस स्थल को खोजा गाया।
  • हड़प्पा स्थल की सबसे प्रथम जानकारी 1826 में चार्ल्स मैसन ने दी।
  • 1853 एवं 1873 में जनरल कनिंघम ने हड्प्पा के टीले एवं इसके पुरातात्विक महत्व का लिखित उल्लेख किया था।
  • 1946 में व्हीलर के निर्देशन में यहाँ उत्खनन हुआ।
  • अनुमानत: हड़प्पा का प्राचीन नगर मूल रूप में 5 कि० मी० के क्षेत्र में बसा था।
  • हड़प्पा नगर व्यवस्था इस प्रकार की गई थी की नगर को दो भागों में बाटा गाया था : 1) दुर्ग (समृद्ध लोग के लिए) 2) निचला नगर (श्रमिकों के लिए)

मोहनजोदड़ो –

  • मोहनजोदड़ो सिन्धु नदी के पूर्वी किनारे पर अवस्थित एक शहर था।
  • इसे ‘मृतकों का टीला’ भी कहते हैं।
  • मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखलदास बनर्जी ने की थी।
  • यह नगर दो खण्डों में विभाजित था: पूर्वी एवं पश्चिमी, पश्चिमी भाग ऊँचा परन्तु छोटा था पश्चिमी खण्ड के आसपास कच्ची ईंटों से किलेबंदी की दीवार बनी थी जिसमें मीनारें और बुर्ज बने होते थे।
  • पश्चिमी गढ़ी में अनेक सार्वजनिक महत्व के स्थल स्थित हैं जैसे: ‘अन्न भंडार, “पुरोहितवास’, महाविद्यालय भवन, विशाल स्नानागार आदि।
  • यहाँ से जो स्न्नानागार मिला है जो की दुर्ग (पश्चिमी खण्ड) में स्थित था की स्थिति 11.88 मी० लंबा, 01 मी० चौड़ा एवं 2.43 मी० गहरा है।
  • इस स्नानागार का इस्तेमाल आनुष्ठानिक स्नान के लिए होता था।
  • मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है यहाँ का धान्य कोठार, जो 71 मीटर लम्बा एवं 15.23 मीटर चौड़ा है।
  • यहाँ से जो अन्नागार मिला है, इसमें 6+6 खण्ड होते थे।
  • मोहनजोदड़ो के अधिकांश मकान पक्की ईंटों से बने हैं।
  • मोहनजोदड़ो से “कास्य की नर्तकी” की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
  • यहाँ से मुहर भी प्राप्त हुई है जिसके बीच में पशुपति (शिव) की प्रतिमा बनी हुई है और चारों तरफ पशु अंकित हैं।

चन्हूदडो

  • यह स्थल मोहनजोदड़ो से दक्षिण-पूर्व दिशा में सिन्धु नदी तट पर स्थित था।
  • ननी गोपाल मजूमदार ने इस स्थल को 1931 में ढूढ़ा था।
  • चन्हूदडो में सिन्धु सभ्यता के पूर्व की संस्कृतियों झूकर एवं झांगर संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से मनका (मोती) बनाने का कारखाना भी मिला है।
  • उपकरण बनाने का कारखाने का साक्ष्य मिला है।
  • यहाँ से लिपस्टिक भी प्राप्त हुई है।

लोथल –

  • यह भोगवा नदी के माध्यम से ‘खम्भात’ (गुजरात) की खाड़ी से जुड़ा हुआ था।
  • यहाँ से गोदाबाडा (जहाजों के लंगर डालने की जगह) मिला है यह सबसे बड़ी इमारत (भवन) का नमुना है।
  • यहाँ मनकों का एक कारखाना मिला है।
  • हाथी के दाँत भी मिले हैं।
  • इस नगर का आन्तरिक विभाजन नहीं हुआ था यहाँ सभी दुर्ग (समतावादी) थे।
  • लोथल से एक मृतभांड (मिट्टी का बर्तन) मिला है इस पर ‘चालक-लोमड़ी’ की कथा अंकित है।
  • यहाँ से युग्म शवाधान प्राप्त हुआ है।
  • अग्नि वेदिका (हवनकुंड) की प्राप्ति हुई।
  • मोसोपोटामिया की मुहर भी प्राप्त हुई है।
  • लोथल के समीप एक और शहर स्थित था – रंगपुर, जो कि ‘भादर’ नदी के तट पर स्थित था।
  • लोथल एवं सुरकोतड़ा सिन्धु सभ्यता का बंदरगाह थे।

रंगपुर –

  • यह लोथल के समीप ‘भादर’ नदी के किनारे मिला है।
  • माधोस्वरूप वत्स ने 1931-34 में तथा रंगनाथ राव ने 1953-54 में रंगपुर का उत्खनन करवाया।
  • लोथल एवं रंगपुर से चावल और हाथी के साक्ष्य मिले है।

सुरकोतड़ा –

  • सुरकोतड़ा गुजरात के कच्छ में स्थित था।
  • सुरकोतड़ा की खोज श्री गजपत जोशी ने 1964 ई० में की।
  • यहाँ सिन्धु सभ्यता के बर्तनों के साथ ही एक नयी तरह का लाल भाण्ड भी मिला है।
  • यहाँ घोड़े की अस्थियो के साक्ष्य मिले है।

धौलावीरा

  • यह भी कच्छ के रण में अवस्थित है।
  • यहाँ नगर व्यवस्था तीन भागों में बटी थी।
  • यहाँ जल निकासी के बजाये जल आपूर्ति की व्यवस्था अच्छी थी।
  • यहाँ दो नहरों से वाटर सप्लाई होता था – मनहर, मनसर।
  • यहाँ पर सूचनापट के साक्ष्य मिले हैं जिस पर हड़प्पा लिपि के 17 अक्षर अंकित है।

कालीबंगा

  • राजस्थान प्रान्त के गंगानगर जिले में स्थित घघ्घर (प्राचीन सरस्वती) के किनारे कालीबंगा स्थित है।
  • 1953 में ब्रजवासी लाल एवं बालकृष्ण थापड़ के निर्देशन में यहाँ खुदाई सम्पन्न हुई।
  • यहाँ खुदाई में दो टीले मिले हैं। दोनों टीले सुरक्षा दीवारों से घिरे हैं।
  • यहाँ से काली रंग की चूड़ियाँ मिली हैं।
  • जुत्ते हुए खेत अथवा हल रेखा का साक्ष्य मिला है।
  • अलंकृत ईंटो का साक्ष्य मिला है।
  • अग्निवेदिका का साक्ष्य मिला है।
  • यहाँ सिन्धु सभ्यता के साथ-साथ सिन्धु-पूर्व सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

राखी गढ़ी

  • हरियाणा प्रान्त के जिंद जिले में स्थित इस स्थल की खोज सूरजभान और आचार्य भगवान देव ने की थी।
  • यहाँ से सिन्धु पूर्व सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं यहाँ से ताँबे के उपकरण एवं सिन्धु लिपि युक्त एक लघु मुद्रा भी उपलब्ध हुई है।

बणावली/बनवाली

  • यह हिसार जिले में सरस्वती नदी, जो अब सूख चुकी है, की घाटी में स्थित है।
  • रविन्द्र सिंह विष्ट ने 1973-74 में यहाँ उत्खनन करवाया।
  • जल निकासी का साक्ष्य नही मिला है।
  • यहाँ की सड़को पर पहियों की चाल का साक्ष्य मिला है।
  • मिट्टी का बना हल मिला है।
  • सबसे अच्छा जौ मिला है।
  • सड़के सीधी नही है।
  • यहाँ प्राप्त पुरातात्विक सामग्रियों में ताँबे के बाणाग्र, उस्तरे, मनके, पशु और मानव मृण्मूर्तियाँ, बाट बटखरे, मिट्टी की गोलियाँ, सिन्धु लिपि में अंकित लेख वाली मुद्रा आदि प्राप्त हुई है।

मीत्ताथल

  • हरियाणा प्रदेश में भिवानी जिले में स्थित इस स्थल का उत्खनन 1968 में सूरजभान ने करवाया।

रोपड़

  • पंजाब में शिवालिक पहाड़ी की उपत्यका में स्थित इस स्थल की खुदाई यज्ञदत्त शर्मा के निर्देशन में 1955 से 1956 तक हुई।
  • रोपड़ में सिन्धु सभ्यता के अतिरिक्त 5 अन्य सिन्धु-उत्तर संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से कांचली मिट्टी एवं अन्य पदार्थों के आभूषण, ताम्र कुल्हाड़ी, चार्ट फलक, प्राप्त हुई है।

 सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल : खोज वर्ष, उत्खनन कर्ता, नदी एवं उनकी स्थिति

स्थल खोज वर्ष उत्खनन कर्ता नदी

स्थिति

हड़प्पा 1921 दयाराम साहनी रावी के किनारे मॉन्टगोमरी जिला (पाकिस्तान)
मोहनजोदड़ो 1922 राखल दास बनर्जी सिंधु के दाहिने किनारे पर लरकाना जिला (सिंध) पाकिस्तान
चन्हुदड़ो 1931 एम जे मजूमदार सिंधु के बाएं किनारे सिंध प्रांत पाकिस्तान
लोथल 1955 रंगनाथ राव भोगवा गुजरात
रंगपुर 1953-54 रंगनाथ राव भादर गुजरात
राखीगढ़ी 1963 प्रो. सूरजभान हरियाणा
रोपड़ 1953-56 यज्ञदत्त शर्मा सतलज पंजाब
बणावली/बनवाली 1974 रविंद्र सिंह बिष्ट रंगोई हरियाणा
धोलावीरा 1990 रविंद्र सिंह बिष्ट लूनी गुजरात कच्छ जिला
कालीबंगा 1953 बी बी लाल एवं

बी के थापर

घग्घर (सरस्वती) राजस्थान

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

सिंधु सभ्यता में भिन्न स्थानों से आयात की जाने वाली वस्तुएं

आयात की जाने वाली वस्तुएँ     

स्थान

तांबा खेतड़ी (राजस्थान), बलूचिस्तान
सोना अफगानिस्तान, फारस, भारत (कर्नाटक)
चांदी   ईरान, अफगानिस्तान
टिन ईरान (मध्य एशिया), अफगानिस्तान
शंख एवं कौड़ियां सौराष्ट्र (गुजरात), दक्षिण भारत
नील रत्न                                 बदख्शाँ (अफगानिस्तान)
सीसा ईरान, राजस्थान, अफगानिस्तान
स्टेटाइट ईरान

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

सिन्धु सभ्यता का उद्‌गम:-

  • “फेयर सर्विस” के अनुसार इस सभ्यता का उद्‌गम और विस्तार बलूची संस्कृतियों का सिंधु प्रदेश की आखेट पर निर्भर करने वाली किन्हीं वन्य और कृषक संस्कृतियों के पारस्परिक प्रभाव के फलस्वरूप हुआ।
  • “व्हीलर” का मत है कि मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग ही सिन्धु सभ्यता के जनक थे।
  • “गार्डन” का मत है कि मेसोपोटामिया के लोग समुद्री मार्ग से यहाँ आए तथा नये वातावरण में नये सिरे से चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के फलस्वरूप यहाँ नई संस्कृति का विकास किये।

सिन्धु सभ्यता के पतन के सिधान्त:-

सिन्धु सभ्यता के पतन का अभी तक कोई निश्चित कारण ज्ञात नहीं हो सका है। कुछ विद्वानों का मत इस प्रकार हैं:-

  • “घोष” द्वारा ऐसी धारणा व्यक्त की गयी है कि मानसूनी हवाओं के बदलने से सिंध क्षेत्र में वर्षा में कमी आयी। आर्द्रता का ह्रास एवं शुष्कता (जलवायु परिवर्तन) का विस्तार सभ्यता के अंत का प्रमुख कारण माना जाता है।
  • “एच० टी० लैम्बरिक” के अनुसार नदियों के मार्ग परिवर्तन से भी बस्तियाँ उजड़ गयी होंगीं। रावी जो हड़प्पा के बिलकुल समीप बहती थी आज वह लगभग 6 मील की दूरी पर है।
  • नदियों में बाढ़ का आना हड़प्पा संस्कृति के लोगों के लिए एक सामान्य विभीषिका बन चुका था। मार्शल के द्वारा मोहनजोदड़ो की खुदाई में 7 स्तर प्राप्त हुए हैं।
  • प्रसिद्ध भारतीय भूगर्भशास्त्री एम० आर० साहनी ने यह धारणा व्यक्त की थी कि सिन्धु सभ्यता के अंत का मुख्य कारण विशाल पैमाने पर जलप्लावन था।
  • “मार्टिन व्हीलर” आदि विद्वानों का मत है कि सिन्धु सभ्यता का अंत आर्यों के आक्रमण के कारण हुआ। यह मत इन तथ्यों पर आधारित है माना गाया है:
    1. मोहनजोदड़ो के ऊपरी सतह पर प्रभूत संख्या में कंकालों का अन्वेषण-जिससे आर्यों द्वारा किए गए नरसंहार का पता चलता है।
    2. ऋग्वेद के अन्तर्गत इन्द्र को दुर्ग-संहारक के रूप में उल्लिखित किया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

Important Facts of सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization) for Competitive Exams:

  • सिन्धु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
  • सिन्धु सभ्यता के नगर विश्व के प्राचीनतम सुनियोजित नगर थे।
  • अधिकांश नगरों में दुर्ग बने हुए थे, जहाँ समृद्ध वर्ग के लोग रहते थे।
  • हड़प्पा का वह काल जब पूर्ण अवस्था में नगर/समाज विकसित थे- (2200 C. to 2000 B.C.)
  • हड़प्पा समाज अहिंसा मूलक समाज था।
  • यह मातृसतात्मक समाज था।
  • हड़प्पा समाज बहु प्रजातीय समाज था (प्राप्त कंकालों की बनावट के आधार पर) इसे चार समूहों में वर्गीकृत किया गया है :- (1) आद्य आस्ट्रेलायड (2) भूमध्य-सागरीय (3) मंगोलीय (4) अल्पाइन।
  • सिन्धु सभ्यता के प्रत्येक भवन में स्नानागार एवं घर के गंदे जल की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध था।
  • सिन्धु सभ्यता के अवशेषों में मन्दिर स्थापत्य का कोई सबूत नहीं प्राप्त हुआ है अर्थात हम कह सकते है की सिन्धु सभ्यता में मंदिर नही होते थे
  • सिन्धु सभ्यता के पुरातत्व अवशेषों में उपलब्ध पाषाण मूर्तियाँ एलेबेस्टर, चूना पत्थर, सेलखड़ी, बलुआ पत्थर एवं सलेटी पत्थर से निर्मित हैं।
  • सभी प्रकार का विनिर्माण होता था जैसे मूर्तियाँ, चूड़ियाँ, मृतभांड, मोहर आदि।
  • सिन्धु सभ्यता में व्यापार समृद्ध था।
  • वस्तुओं के लेन-देन से व्यपार होता था।
  • महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था – ‘लोथल’।
  • मोहनजोदड़ो से 14 से० मी० ऊँची कांस्य की नृत्य करती हुई नग्न मूर्ति प्राप्त हुई है। हड़प्पाकालीन - मूर्तियाँ -sukrajclasses.com
  • मोहनजोदड़ो से कांसे की कुछ पशुओं की भी आकृतियाँ मिली हैं।
  • लोथल से ताँबे के पक्षी, बैल, खरगोश और कुत्ते की आकृतियाँ मिली हैं।
  • हड़प्पा संस्कृति में उपलब्ध शिल्प आकृतियों में सर्वाधिक संख्या मृण्मूर्तियों की है। ये मूर्तियाँ मानव और पशुओं की है।
  • मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त मृण्मूर्तियों में नारी की मृण्मूर्तियाँ पुरुषों से अधिक हैं।
  • यहाँ के लोग हवनकुंड (जैसे के लोथल में) का प्रयोग करते थे।
  • बली (कर) प्रथा भी प्रचलित थी।
  • हड़प्पा में कूबड़ वाले बैलों की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या में मिली हैं और उसके बाद बिना कूबड़ वाले बैल की।
  • मोहनजोदड़ो में छोटे सिंग और बिना कूबड़ के बैल की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या में मिली हैं, उसके बाद कूबड़ वाले बैल की। बैल के पश्चात मोहनजोदड़ो में मेढ़े की आकृतियों की संख्या हैं, तत्पश्चात गैंडे की।
  • हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की मृण्मूर्तियों में गाय की आकृतियाँ नहीं मिली हैं।
  • सिन्धु सभ्यता के विभिन्न स्थलों से लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। 
  • अधिकांश मुहरों पर चित्रलिपि में लेख हैं या उन पर पशु आकृतियाँ बनी हैं।
  • अधिकांश मृद्भाण्ड बिना चित्र वाले हैं। कुछ बर्तनों पर पीला, लाल या गुलाबी रंग का लेप है।
  • बर्तनों पर वनस्पति–पीपल, ताड़, नीम, केला, और बाजरा के चित्र पहचाने गये हैं। मछली, और, बकरे, हिरण, मुर्गा आदि जानवरों के चित्रण भी बर्तनों पर है।
  • सिन्धु सभ्यता के निवासी मातृदेवी की उपासना करते थे।
  • हड़प्पावासी धरती को उर्वरता की देवी समझते थे।
  • सिन्धु सभ्यता में लोग पशुओं की भी पूजा करते थे। इनमें सबसे पूज्य कूबड़ वाला सांड था।
  • सिन्धु सभ्यता में लिंग पूजा प्रचलित थी। स्त्रियों की पूजा पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होती थी।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल चना, कपास, खजूर, तरबूज आदि पैदा करते थे।
  • सैन्धववासी अपनी आवश्यकता से अधिक अनाज पैदा करते थे, जो शहरों में रहने वाले लोगों के काम आता था।
  • राजकीय स्तर पर अनाज रखने के लिए हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल में विशाल अन्नागारों का निर्माण हुआ था।
  • हड़प्पा संस्कृति कांस्ययुगीन है।
  • ताँबा राजस्थान की खेतड़ी खानों से प्राप्त किया जाता था।
  • मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है।
  • सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है।
  • चन्हूदडो एकमात्र पुरास्थल है जहाँ से वक्राकार ईटे मिली है।
  • बनावली से अच्छे किस्म का जौ तथा पक्की मिट्टी के बने हल की आकृति का खिलौना प्राप्त हुआ है।
  • सुकोटडा से घोड़े की अस्थियाँ तथा एक विशेष प्रकार का कब्र प्राप्त हुआ है।
  • रंगपुर से धान की भूसी का ढेर प्राप्त हुआ है।
  • सुत्कागेंडोर का दुर्ग एक प्राकृतिक स्थान पर बसाया गया था।
  • सर्वाधिक संख्या में मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है, जो मुख्यत: चौकोर है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर पशुपति शिव की आकृति से गैडा, भैसा, हाथी बाघ एवं हिरन की उपस्थिति के साक्ष्य प्राप्त हुए।
  • लोथल का अर्थ “मृतकों का टीला” है।
  • लोथल से धान व् बाजरे की खेती के अवशेष मिले है।
  • लोथल से गोदीवाडा से साक्ष्य प्राप्त हुए है।
  • लोथल से स्त्री पुरुष शवाधान के साक्ष्य प्राप्त होते है।
  • चावल की खेती के प्रमाण लोथल एवं रंगपुर से प्राप्त हुआ है।
  • सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिन्धु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है।
  • घोड़े के अस्तित्व के संकेत मोहनजोदड़ो, लोथल, राणाघुंडी, एवं सुरकोटदा से प्राप्त हुए है।
  • कूबड़ वाला सांड सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे प्रिय पशु था।
  • भारत में चाँदी सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता में पायी गई है।
  • सैन्ध्वकालीन लोगों ने लेखन कला का आविष्कार किया था।

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization)- Ancient History

Click Here For:

If you like and think that Ancient History of India topic- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization), is helpful for you. Please comment. Your comments/suggestions would be greatly appreciated. Thank you to be here. Regards – Team SukRaj Classes.

Back To Top
error: Content is protected !! Copyrights Reserved