भारत में वनों के प्रकार – Geography of India
Competitive Geography topic – “भारत में वनों के प्रकार”, is important for all competitive exams i.e. CET (Common eligibility Test), SSC CGL, RRB NTPC, UPSC and other state civil services exams. In these exams, almost 4-5 questions are coming from Geography. Let’s start the topic:
भारत एक मानसूनी जलवायु वाला भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण यहां की प्राकृतिक वनस्पति वर्षा का अनुसरण करती है। यहाँ अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन से लेकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कटीले वन पाये जाते हैं।
जलवायु और भौगोलिक संरचना के आधार पर भारत में मुख्य रूप से पांच प्रकार के वन पाये जाते हैं:–
- ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन
- पर्णपाती वन
- कटीले वन
- पर्वतीय वन
- मैंग्रोव वन
आइये इनको विस्तारपूर्वक रूप से समझते हैं:-
- ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन:
- इनको सदाबहार वन या वर्षा वन भी कहा जाता है।
- भारत में वर्षा वन उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां वर्षा की मात्रा 250 cm तक होती है।
- इन वनों की विशेषता यह है कि ये वन सालभर अपनी पत्तियां नहीं गिराते हैं और हमेशा हरे-भरे रहते हैं।
- भारत में ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं:–
- पश्चिमी घाट में महाराष्ट्र से केरल तक।
- पूर्वोत्तर भारत का शिलांग पठार।
- पश्चिम बंगाल तथा ओड़िशा का तटील भाग।
- तमिलनाडु का कोरामण्डल तट।
- अंडमान और निकोबार।
- हिमालय का तराई क्षेत्र।
- ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वनों की प्रमुख विशेषताएँ:–
- ये वन बहुत घने एवं लम्बे होते हैं। जिस कारण सूर्य का प्रकाश धरती तक नहीं पहुँच पाता है।
- इनकी पत्तियां काफी चौड़ी होती है। जिससे ये धरती के जल का वाष्पोत्सर्जन करते हैं।
- इन वनों में जीवों तथा वनस्पतियों की विविधता पायी जाती है।
- इन वनों में कठोर लकड़ी वाले वृक्ष पाये जाते हैं। अतः इन वृक्षों की लकड़ी का आर्थिक/इमारती उपयोग नहीं हो पाता है।
- ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के प्रमुख वृक्ष निम्नलिखित हैं:–
- महोगनी, रोजवुड, आबनूस, एबोनी।
- लम्बे-लम्बे वृक्ष: नारियल, ताड़, बांस।
- रबड़, सिनकोना।
- पतझड़ वन या पर्णपाती वन या मानसूनी वन:
- इन्हें पतझड़ या पर्णपाती वन भी कहा जाता है।
- ये वन वहां पाये जाते हैं; जहां वार्षिक वर्षा 100cm से 250cm तक होती है।
- देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल में यही मानसूनी वन पाए जाते हैं।
- केवल मानसून में वर्षा होने के कारण (पूरे साल वर्षा नहीं होती), यहां पाये जाने वाले वृक्ष सर्दियां बीत जाने के बाद या गर्मी आने से पहले; पानी बचाने के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं।
- भारत में पतझड़ वन या पर्णपाती वनों के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं:–
- भारत में ये वन:- हिमालय के तराई क्षेत्र अर्थात उत्तर प्रदेश से तमिलनाडु तक (बीच के कटीले वन वाले भाग को छोड़कर) और मध्य प्रदेश से लेकर झारखंड तक जहां वर्षा मानसूनी होती है, में पाये जाते हैं।
- पतझड़ वन या पर्णपाती वनों की विशेषताएँ:–
- इन वनों के वृक्षों की लकड़ी मुलायम एवं मजबूत होती हैं।
- इन वृक्षों का इमारती प्रयोग सर्वाधिक होता है। अतः आर्थिक उपयोगिता सबसे अच्छी है।
- पतझड़ वन या पर्णपाती वनों के प्रमुख वृक्ष:-
- शीशम, साल, सागौन, साखू, आम, आंवला, चंदन इतियादी।
- चंदन के वृक्ष मुख्य रूप से कर्नाटक तथा नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में पाये जाते हैं।
- कटीले वन तथा झाड़ियां:
- ये वन कम वर्षा वाले क्षेत्रों; जहां वार्षिक वर्षा 70cm से कम होती है; में पाये जाते हैं।
- इन वनों की यह विशेषता है कि इनमें पत्तों के साथ साथ कांटे भी पाए जाते हैं।
- यहाँ पत्तों की जगह काटों ने ले ली है, ताकि वाष्पीकरण कम हो और पानी की बचत करके लम्बे समय तक जीवित रह सकें।
- भारत में कटीले वन प्रमुख रूप से दो क्षेत्र में पाये जाते हैं:–
- पश्चिमी भारत में- राजस्थान, पंजाब, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।
- वृष्टि छाया प्रदेश- मध्य प्रदेश के इंदौर से आंध्र प्रदेश के ‘कर्नूल जिले’ तक एक अर्ध चंद्राकार पेटी में पाये जाते हैं।
- भारत में कटीले वनों के प्रमुख वृक्ष:– बबूल, खजूर, नागफनी, खेजड़ा, बेल इतियादी।
- पर्वतीय वन:
- ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में तेज गिरावट आती है इसलिए पर्वतों पर पाये जाने वाले वन वर्षा का अनुसरण न करके ढ़ाल का अनुसरण करते हैं।
- ऊंचाई के साथ तापमान में तेज गिरावट के कारण सीमित क्षेत्र में ही जलवायु में परिवर्तन दिखाई पड़ता है।
- भारत में पर्वतीय वन प्रमुख रूप से दो क्षेत्रों में पाये जाते हैं:–
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- हिमालयी क्षेत्रीय पर्वतीय वन: (ऊंचाई के आधार पर)
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- 1500मी0 तक- सदाबहार तथा पतझड़ वन
- 1500मी0 से 2500मी0 तक- शीतोष्ण चौड़ी पत्ती वाले वन- देवदार, ओक, बर्च, मैपिल।
- 2500मी0 से 4500मी0 तक – कोणधारी वन- चीड़, स्प्रूस, फर, सनोवर, ब्लूपाइन
- 4500मी0 से 4800मी0 तक- टुण्ड्रा वनस्पति- काई, घास, लिचेन।
- 4800मी0 से ऊपर- कोई वनस्पति नहीं पायी जाती।
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- दक्षिण भारत में पाये जाने वाले पर्वतीय वन:
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- दक्षिण भारत की ये पहाड़ियाँ हिमालय पर्वत की पहाड़ियों जीतनी ऊंची नहीं है। अतः यहां कोणधारी वन नहीं पाये जाते।
- दक्षिण में ये वन नीलगिरी पर्वत, अन्नामलाई तथा पालनी की पहाड़ियों में पाये जाते हैं।
- इन तीनों पहाड़ियों के कुछ-कुछ क्षेत्रों में शीतोष्ण वन पाये जाते हैं, जिन्हें दक्षिण भारत में ‘शोलास’ भी कहा जाता है।
- शोलास वनों के मुख्य वृक्ष हैं:- लारेल एवं मौगनोलिया।
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- ज्वारीय वन या मैंग्रोव वन:
- भारत में तटीय क्षेत्रों में जहां नदियां अपना डेल्टा बनाती हैं; वहां ये वन पाये जाते हैं।
- भारत में ज्वारीय वन या मैंग्रोव वन-क्षेत्र:–
- ये गंगा नदी का डेल्टा, महानदी का डेल्टा, ब्रह्मपुत्र नदी का डेल्टा, गोदावरी का डेल्टा, कृष्णा का डेल्टा, कावेरी का डेल्टा तथा गुजरात में कुछ भागों में पाये जाते हैं।
- वैसे तो अधिकतर मैंग्रोव वन पूर्वी तट पर पाये जाते हैं लेकिन कुछ मैंग्रोव वन गुजरात में भी पाये जाते हैं जो कि यहां नदी डेल्टा पर नहीं बल्कि ज्वारीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। अतः यहां इन्हें ‘ज्वारीय वन’ कहा जाता है।
- क्योकिं गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का अधिकांश भाग बांग्लादेश के अधीन आता है अतः भारत में मैग्रोंव वनों की सबसे अधिक मात्रा गुजरात में पायी जाती है और उसके बाद आंध्र प्रदेश में ‘गोदावरी तथा कृष्णा नदी के डेल्टा में’।
- मैंग्रोव वनों की प्रमुख वनस्पति:– मैंग्रोवा, सुंदरी, कैसूरीना, फॉनिकस
- गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसी वन में बंगाल टाइगर पाया जाता है।
- इन वनों की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं:–
- इन वनों की लकड़ी कठोर होती है तथा छाल क्षारीय होती है।
- ये वन समुद्र के खारे पानी में डूबे रहते हैं।
- इन वनों की जड़े पानी के बाहर दिखाई देती हैं।
- मैंग्रोव वनों का महत्व:-
- मैंग्रोव वन सुनामी और चक्रवात से तटों की सुरक्षा करते हैं।
- ये वन जलीय जीवों की प्रारंभिक नर्सरी का कार्य करते हैं।
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भारत में वनों के प्रकार – Geography of India
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