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पुष्यभूतियों (वर्धन वंश) का उदय और राज्य विस्तार – Haryana History

पुष्यभूतियों (वर्धन वंश) का उदय और राज्य विस्तार – Haryana History

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पुष्यभूतियों (वर्धन वंश) का उदय और राज्य विस्तार – Haryana History

5वी सदी के अंत तक गुप्त साम्राज्य का पतन होने के बाद अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ तथा कई महत्वाकांक्षी सरदार व सामंत स्वतंत्र हो गए। उस समय हरियाणा क्षेत्र जो कि श्रीकंठ जनपद कहलाता था, थानेश्वर के आसपास के भूभाग पर पुष्पभूति नामक एक सामंत सरदार ने अधिकार करके स्वतंत्र सत्ता की घोषणा कर दी।

  • बाणभट्ट ने अपने ग्रंथ “हर्षचरित’ में हर्ष के प्रथम पूर्वज का नाम पुष्पभूति बताया है। हर्षवर्धन के अभिलेखों में पुष्पभूति की कोई चर्चा नहीं है। उनमें नरवर्धन को ही सबसे पहला शासक कहा गया है किंतु न तो यह ज्ञात है कि पुष्पभूति से नरवर्धन का क्या संबंध था न ही यह इसके बाद किस पीढ़ी में वह हुआ।
  • हर्ष के पूर्वजों की राजधानी स्थाणी-स्वर अथवा थानेश्वर थी।
  • पुष्पभूति को हर्ष चरित में राजा और भू-पाल कहा गया है, जो उसके सामंत पद का द्योतक है।
  • हर्ष के बांस-खेड़ा तामपत्र लेख से ज्ञात होता है कि महाराजा नरवर्धन की रानी- वाजिणी देवी से राज्यवर्धन-प्रथम पैदा हुआ। महाराजा राज्यवर्धन की रानी- अप्सरो देवी से आदित्यवर्धन जन्मा और महाराजा आदित्यवर्धन ने किसी गुप्त वंशी राजकुमारी महासेन गुप्ता से विवाह किया जिससे प्रभाकर वर्धन पैदा हुआ।
  • प्रभाकर वर्धन और उसकी रानी यशोमती की तीन संताने ⇒ राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और राज्य श्री नामक थी। इस बात की पुष्टि नालंदा-लेख से भी होती है।

पुरातात्विक स्त्रोतों के अनुसार वर्धन वंश के शासक:    

नरवर्धन ⇒ राज्यवर्धन प्रथम ⇒ आदित्यवर्धन ⇒ प्रभाकर वर्धन ⇒ राज्यवर्धन द्वितीय ⇒ हर्षवर्धन

प्रभाकरवर्धन (580 से 605 ई.):

  • प्रारंभिक तीनों राजाओं के साथ लगी “महाराजा’ की उपाधि से ज्ञात होता है कि संभवतः ये तीनों शासक सामंत शासक थे। अतः इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक प्रभाकरवर्धन ही था। ऐसा उसकी उपाधियों “परमभट्टारक’ तथा “महाराजाधिराज’ से ज्ञात होता है।
  • यह प्रतापशील राजा के नाम से भी प्रसिद्ध था।
  • अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रभाकरवर्धन ने अपनी पुत्री राज्य श्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के शासक ग्रहवर्मा से कर दिया। इस विवाह के कारण मालवा के शासक जो कन्नौज से दुश्मनी रखते थे, श्रीकंठ राज्य के भी शत्रु बन गए।
  • प्रभाकरवर्धन ने मालवा पर आक्रमण कर दिया और वहां के शासक को पराजित किया।
  • 604 ई० में प्रभाकरवर्धन ने अपने पुत्र राज्यवर्धन को हुणो को दबाने के लिए भेजा। जब राज्यवर्धन हुणो का दमन करके वापस लौटा तो प्रभाकरवर्धन की मत्यु हो चुकी थी।

 राज्यवर्धन द्वितीय (605 से 606  ई.):

  • जब राज्यवर्धन हुणो को दबाने गया हुआ था तो पीछे से उसके पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गई तथा उसकी माता यशोमती भी सती हो गई।
  • वापस लौटने पर राज्यवर्धन बहुत दुखी हुआ और उसने राज गद्दी पर न बैठने का फैसला किया। लेकिन हर्ष तथा दरबारियों के कहने पर उसने राजगद्दी संभाल ली।
  • गद्दी पर बैठते ही उसे समाचार मिला कि मालवा के शासक देवगुप्त ने उसके बहनोई ग्रहवर्मा की हत्या कर दी है तथा उसकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया है। यह समाचार सुनते ही राज्यवर्धन ने मालवा पर आक्रमण कर दिया और देवगुप्त को पराजित कर दिया।
  • देवगुप्त (मालवा का शासक) की हार का बदला लेने के लिए उसके मित्र – शशांक (गोड़ के शासक) ने राज्यवर्धन को अपनी पुत्री से विवाह करने का बुलावा भेजा और धोखे से भोजन करते समय मार डाला।

हर्षवर्धन (606 से 647 ई०):

  • जिस समय राज्यवर्धन (हर्षवर्धन के भाई) की मृत्यु हुई उस समय हर्षवर्धन केवल 16 वर्ष का था। वह शासन की बागडोर नहीं संभालना चाहता था लेकिन सेनापति सिंहनाद के कहने पर तथा अन्य लोगों के आग्रह पर हर्ष ने राज गद्दी संभाल ली।
  • सिहांसन पर बैठते ही सबसे पहले उसने अपनी बहन राज्यश्री को खोजा, जो विंध्याचल के जंगलों में सती होने के लिये गयी थी।
  • हर्ष ने थानेसर को छोड़कर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।

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