अग्र गणराज्य और हरियाणा में अग्रों के साक्ष्य
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अग्र गणराज्य और हरियाणा में अग्रों के साक्ष्य
मौर्यों के पतन के पश्चात्, हरियाणा के अग्रोहा क्षेत्र में अग्र गणराज्य के लोगों ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। इस गणराज्य के बारे में जानकारी कुछ सिक्कों के माध्यम से प्राप्त हुई:-
- रोजर्स को सर्वप्रथम अग्र-गणराज्य के 10 तांबे के सिक्के मिले जिनमें से 9 सिक्के वर्तमान – बरवाला (हिसार) से मिले तथा एक सिक्का जो आजकल भारतीय संग्रहालय में है उसका ठीक से पता नहीं है कि वह किस स्थान से प्राप्त हुआ था। रोजर्स को पाये गए नौ सिक्कों को ब्रिटिश संग्रहालय में रखा है।
- सन् 1938-39 में एच० एल० श्रीवास्तव द्वारा अग्रोहा पुरास्थल में उत्खनन किये जाने पर अग्र-गण कालीन 51 ताम्बे के सिक्के मिले थे।
- सिक्कों के अतिरिक्त, अग्र गणराज्य का उल्लेख 5वीं सदी ईसा पूर्व पाणिनी की पुस्तक – अष्टाध्यायी में भी मिलता है। इससे स्पष्ट है कि पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में यह गण विद्यमान था।
- बौधायन के श्रोत सूत्र तथा पातंजली के महाभाष्य में भी इस गण का उल्लेख हुआ है।
- महाभारत में अन्य गणराज्यों के साथ अग्रगण का उल्लेख मिलता है।
- सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण के समय अग्रगण एक शक्तिशाली गण था। सिकंदर का इस गण के साथ युद्ध हुआ था। सिकंदर के इतिहासकार अग्गल सोई कहते हैं कि सिकंदर के साथ हुए युद्ध के समय अग्र गण की सेना में 4000 पैदल तथा 3000 घुड़सवार थे। ये सिकंदर की सेना से बहादुरी से लड़े तथा सिंकदर के अनेक सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
- सिक्कों में अग्रों के लिए अग्रेय अग्ग आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(नोट: – यहाँ *अग्रो – अग्र गणराज्य के लोगो को कहा गया है।)
- बौद्ध ग्रंथ ”महामातुरी” में इस गणराज्य का प्राकृत भाषा में “अगोदक” नाम मिलता है। कुछ स्थानों पर अग्रत्य व अगाच शब्दों का भी इसके लिए प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है “अग्रप्रदेश” के रहने वाले लोग। ऐसा प्रतीत होता है कि अग्र गण के नाम के आधार पर इस क्षेत्र का नाम अग्र ही था।
- बाद में जनपद बन जाने के कारण “अग्रत्य-जनपद” कहलाया तथा सिक्कों पर प्राकृत भाषा में “अगाच जनपद” अंकित किया गया।
- अग्र गण का मुख्य नगर अथवा राजधानी – अग्रोदक था तथा यहां संभवत: इस गण के सिक्के भी ढाले जाते थे।
- इतिहासकार अग्रोदक की पहचान आधुनिक हिसार के अग्रोहा गांव से करते हैं। यहां से अग्र-गण के सिक्के भी मिले हैं। यहां पर प्राचीन टीले भी हैं, ये टीले 141 एकड़ भूमि क्षेत्र में फैले हुए हैं।
- एक परंपरा के अनुसार राजा अग्रसेन, जो कि अग्रवाल जाति के आदि पुरुष माने जाते हैं, ने अग्रोहा बसाया तथा उस पर शासन किया। लेकिन कुछ इतिहासकार ये मानते हैं कि अग्रोहा संस्कृत नामक – अग्रोदक का अपभ्रंश है। यह अग्रोदक प्राचीन काल में तक्षशीला के मथुरा को जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित था। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर अग्रोहा की स्थापना चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी।
साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि पांचर्वी शताब्दी ईसा पूर्व में अग्र गण हरियाणा में अग्रोहा में विद्यमान था। सिकंदर के आक्रमण के पश्चात् ये मौर्यों के अधीन हो गए। मौर्यों के पतन के पश्चात् यद्यपि स्वतंत्र राज्यों का दौर शुरू हुआ लेकिन कुषाणों के आक्रमण ने इनकी स्थिति खराब कर दी। संभवत: कुषाण शासक वासुदेव के समय में अन्य गणराज्यों के साथ मिलकर कुषाणों को हराकर अग्रो ने अपना स्वतंत्र रूप हासिल किया। लेकिन इसके बाद अग्रो का विलय यौधेयों में हो गया।
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